________________ नवम शतक : उद्देशक-३२] [475 संयोग होने से प्रत्येक के 5-5 भंग होते हैं / यों 745-35 भंग हुए / इन 35 भंगों को 6 विकल्पों के साथ गुणा करने से 3546=210 भंग कुल होते हैं।' अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और तीन पंकप्रभा में होते हैं। इस क्रम से जिस प्रकार चार नैरयिकों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार पांच नैरयिकों के भी त्रिकसंयोगी भंग जानना चाहिए / विशेष यह है कि वहाँ 'एक' का संचार था, (उसके स्थान पर) यहाँ दो का संचार करना चाहिए। शेष सब पूर्ववत जान लेना चाहिए; यावत अथवा तीन धमप्रभा में, एक तमःप्रभा में, और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है; यहाँ तक कहना चाहिए। त्रिकसंयोगी भंग- इनमें से रत्नप्रभा के संयोग वाले 60, शर्कराप्रभा के संयोग वाले 60, बालुकाप्रभा के संयोगवाले 36, पंकप्रभा के संयोग बाले 18, और धूमप्रभा के संयोग वाले 6 भंग होते हैं / ये सभी 60+60.36, + 18+ 6 = 210 भंग विकसंयोगी होते हैं / (1) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं, इसी प्रकार (2-4) यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (यों 1-1-1-2 के संयोग से चार भंग होते हैं / ) (1) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है / इसी प्रकार (2-4) यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्बी में होता है। (यों 1-1-2-1 के संयोग से चार भंग होते हैं।) (1) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है। इस प्रकार (2-4) यावत् एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में एक बालुकाप्रभा में, और एक अध:सप्तमपृथ्वी में होता है / (यों 1-2-1-1 के संयोग से चार भंग होते हैं।) (1) अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होते हैं / इसी प्रकार यावत् (2-4) अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है / (यों 2-1-1-1 के संयोग से 4 भंग होते हैं / ) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और दो धूमप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार चार नैरयिक जीवों के चतुःसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार पांच नैरयिक जीवों के चतु:संयोगी भंग कहना चाहिए, किन्तु यहाँ एक अधिक का संचार (संयोग) करना चाहिए / इस प्रकार यावत् दो पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है, यहाँ तक कहना चाहिए / (ये चतुःसंयोगी 140 भंग होते हैं)। विवेचन—पांच नैरयिकों के चतुःसंयोगी भंग-चतुःसंयोगी 4 विकल्प होते हैं, यथा--१-११-२, 1-1-2-1, 1-2-1-1, और 2-1-1-1 / सात नरकों के चतुःसंयोगी पैतीस भंग होते हैं। इन पंतीस को 4 से गुणा करने पर कुल 140 भंग होते हैं। यथा-रत्नप्रभा में संयोग वाले 80, 1. भगवती अ. वृत्ति सूत्र 444 2. भगवती. भाग 4, (पं, घेवर चन्दजी), पृ. 1643 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org