________________ 468 / | व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [16 प्र.] भगवन् ! नैरयिकप्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए चार नैरयिक जीव क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न / [16 उ.] 'गांगेय ! वे चार नै रयिक जीव रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (इस प्रकार असंयोगी सात विकल्प और सात ही भंग होते हैं / ) (द्विकसंयोगी तिरेसठ भंग)--- (1) अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते हैं; (2) अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते हैं; (3-4-5-6) इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं / (इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ 1-3 के 6 भंग होते हैं।) (7) अथवा दो रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते हैं; (8-6-10-11-12) इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (यों रत्नप्रभा के साथ 2-2 के छह भंग होते हैं।) (13) अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है; (14-18) इसी प्रकार यावत अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तमपथ्वी में होता है। इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ 3-1 के 6 भंग होते हैं / यो रत्नप्रभा के साथ कुल भंग 6+6+6=18 हुए / ) (1) अथवा एक शर्कराप्रभा में और तीन वालुकाप्रभा में होते हैं / जिस प्रकार रत्नप्रभा का आगे की नरकपृथ्वियों के साथ संचार (योग) किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभा का भी उसके पागे की नरकों के साथ संचार करना चाहिए। (इस प्रकार शकराप्रभा के साथ 1-3 के 5 भंग, 2-2 के 5 भंग, एवं 3-1 के 5 भंग, यों कुल मिलाकर 15 भंग हुए।) इसी प्रकार आगे की एक-एक (बालुकाप्रभा पंकप्रभा, आदि) नरकवियों के साथ योग करना चाहिए। (इस प्रकार बालुकाप्रभा के साथ भी 1-3 के 4, 2-2 के 4 और 3-1 के 4 यों कुल 12 भंग पंकप्रभा के साथ 1-3 के 3, 2-2 के 3 और 3-1 के 3, यों कुल 6 भंग, तथा धमप्रभा के साथ 1-3 के 2, 2-2 के 2, और 3-1 के 2, तथा तमःप्रभा के साथ 1-3 का 1, 2-2 का १और 3-1 का 1 होता है। यावत अथवा तीन तमःप्रभा में और एक तमस्तम प्रभा में होता है, यहाँ तक कहना चाहिए / (इस प्रकार द्विकसंयोगी कुल 63 भंग हए।) (त्रिकसंयोगी 105 भंग)-(१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दं बालुकाप्रभा में होते हैं। (2) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं / (3-4-5' इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और दो अधःसप्तमपृथ्वी में होते (इस प्रकार 1-1-2 के पाँच भंग हुए / ) (1) अथवा एक रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक वालुकाप्रभा में होता है; (2 से 5 इसी प्रकार यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में दो शर्कराप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होत है / इसी प्रकार 1-2-1 के भी पांच भंग हुए। (1) अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org