SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1024
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवमं सयं : नवम शतक प्राथमिक * व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र का यह नौवां शतक है। * इसमें जम्बूद्वीप, चन्द्रमा आदि, अन्त:पज असोच्चा केवली, गांगेय-प्रश्नोत्तर, ऋषभदत्त देवानन्दाप्रकरण, जमालि अनगार, एवं पुरुषहन्ता आदि से सम्बद्ध प्रश्नोत्तर आदि विषयों के प्रतिपादक चौंतीस उद्देशक हैं। * प्रथम उद्देशक में जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र का अतिदेश करके जम्बुद्वीप का स्वरूप, उसका प्राकार, लम्बाई-चौडाई, उसमें स्थित भरत-ऐरावत. हैमवत-रण्यवत. हरिवर्ष-रम्यकवर्ष एवं महा विदेहक्षेत्र तथा इनमें बहने वाली हजारों छोटी-बड़ी नदियों का संक्षेप में उल्लेख किया गया है / * द्वितीय उद्देशक में जम्बूद्वीप में स्थित विविध द्वीप-समुद्रों तथा चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र, तारा आदि का जीवा भिगमसूत्र के अनुसार संक्षिप्त वर्णन किया गया है। * तृतीय से तीसवें उद्देशक तक में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत मेरुगिरि के दक्षिण में स्थित ‘एकोरुक' अन्तद्वीप का स्वरूप, लम्बाई-चौड़ाई, परिधि का वर्णन है, तथा इसी क्रम से शेष 27 अन्तर्वीपों के नाम, स्वरूप, अवस्थिति, लम्बाई-चौड़ाई एवं परिधि आदि के वर्णन के लिए जीवाभिगमसूत्र का अतिदेश किया गया है / एकोरुक से लेकर शुद्धदन्त तक इन 28 अन्तीपों के प्रत्येक के नाम से एक-एक उद्देशक है / उसमें रहने वाले मनुष्यों का वर्णन है। * इकतीसवें उद्देशक में केवली आदि दशविध साधकों से सुने बिना (असोच्चा) ही धर्मश्रवण, बोधिलाभ, अनगारधर्म में प्रव्रज्या, शुद्ध ब्रह्मचर्यवास, शुद्ध संयम, शुद्ध संवर, पंचविध ज्ञान की प्राप्ति-अप्राप्ति, तदनन्तर असोच्चाकेवली द्वारा उपदेश, प्रव्रज्या-प्रदान, अवस्थिति, निवास, संख्या, योग, उपयोग आदि का वर्णन है / अन्त में, सोच्चा केवली के विषय में भी इसी प्रकार के तथ्य बतलाए गए हैं। * बत्तीसवें उद्देशक में पार्श्वनाथ-संतानीय गांगेय अनगार के द्वारा भगवान से चौबीसदण्डकवर्ती जीवों के सान्तर-निरन्तर उत्पाद, उद्वर्तन, तथा प्रवेशनकों के विविधसंयोगी भंगों का विस्तृत रूप से वर्णन है / तत्पश्चात्, इन्हीं जीवों के सत् से, सत् में तथा सत् में से उत्पाद तथा उद्वर्त्तन का, तथा स्वयं उत्पन्न होने का वर्णन है / अन्त में, गांगेय अनगार को भगवान् महावीर की सर्वज्ञता और सर्वदशिता पर पूर्णश्रद्धा और विनयभक्तिपूर्वक अपने पूर्वस्वीकृत चातुर्यामधर्म के बदले पंचमहाव्रतयुक्त धर्म स्वीकार करके सिद्ध, बुद्ध, मुक्त हो जाने का वर्णन है / * तेतीसवें उद्देशक के दो विभाग हैं, इसके पूर्वार्द्ध में ब्राह्मणकुण्ड निवासी ऋषभदत्त ब्राह्मण और देवानन्दा ब्राह्मणी का वर्णन है / सर्वप्रथम ऋषभदत्त ब्राह्मण के गुणों का परिचय दिया गया है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy