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________________ समवायांग के पच्चीसवें समवाय का दशवाँ सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए""...' है तो भगवती४१°में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नरयिकों की स्थिति पच्चीस पल्योपम की कही है। समवायांग के छब्बीसवें समवाय का दूसरा सूत्र-'अभवसिद्धिया ......' है तो भगवती 11 में भी अभवसिद्धिक जीवों के मोहनीय कर्म की छब्बीस प्रकृतियाँ सत्ता में कही हैं / समवायांग के छब्बीसवें समवाय का तीसरा सुत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए........' है तो भगवती 12 में भी रत्नप्रभा-नैरयिकों की स्थिति छब्बीस पल्योपम की प्रतिपादित है। समवायांग के अट्ठाईसवें समवाय का तृतीय सूत्र--'प्राभिणिबोहियनाणे........' है तो भगवती13 में भी आभिनिबोधिक ज्ञान 28 प्रकार का बताया है। समवायांग के अट्ठाईसवें समवाय का छठा सूत्र-'इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए...' है तो भगवती 14 में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नैरपिकों की स्थिति अट्ठाईस पल्योपम की बतायी है। समवायांग के उनतीसवें समवाय का दशवाँ सूत्र-'इमीसे गं.....' है तो भगवती१४ में भी रत्नप्रभा पृथ्वी के कुछ नरयिकों की स्थिति उनतीस पल्योपम की बतायी है। समवायांग के तीसवें समवाय का मातवाँ सूत्र-'समणे भगवं महावीरे........' है तो भगवती४१६ में भी कहा है कि श्रमण भगवान् महावीर तीस वर्ष गृहवास में रहकर प्रव्रजित हुये थे। समवायांग के इकतीसवें समवाय का सातवाँ सूत्र-'अहेसत्तमाए पुढवीए.........' है तो भगवती४१७ में भी तमस्तमा पृथ्वी के कुछ नैरयिकों की स्थिति इकतीस सागरोपम की बतायी है। समवायांग के बत्तीसवें समवाय का द्वितीय सूत्र–'बत्तीसं देविदा पण्णत्ता........' है तो भगवती 18 में भी भवनपतियों के बीस, ज्योतिष्कों के दो, वैमानिकों के दश, इस तरह बत्तीस इन्द्र कहे हैं। समवायांग के तेतीसवें समवाय का द्वितीय सूत्र--'चमरस्स.णं असुरिदस्स........' है तो भगवती/१६ में भी चमरेन्द्र की चमरचंचा राजधानी के प्रत्येक द्वार के बाहर तेतीस-तेतीस भौम नगर कहे हैं। समवायांग के पैतीसवें समवाय का पांचवा सूत्र-'सोहम्मे कप्पे सभाए.........' है तो भगवती४२० में भी यही वर्णन है। 410. भगवती-श. 1 उ. 1 411. भगवती-श. 1 उ. 1 412. भगवती---श. 1 उ. 1 413. भगवती-श. 8 उ. 2 414. भगवती-श. 1 उ. 1 415. भगवती-श. 1 उ. 1 416. भगवती-श. 15 417. भगवती-श. 1 उ. 1 418. भगवती-श. 3 उ. 8 419. भगवती-श. 8 उ. 2 420. भगवती-श. 1 उ. 1 [ 75 ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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