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________________ विविधविषयनिरूपण ] [ 223 भगवन् ! संस्थान कितने प्रकार का कहा गया है ? गौतम ! संस्थान छह प्रकार का है—१. समचतुरस्रसंस्थान, 2. न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थान, 3. सादि या स्वातिसंस्थान, 4. वामनसंस्थान, 5. कुब्जकसंस्थान, 6 हुडकसंस्थान / / विवेचन शरीर के प्राकार को संस्थान कहते हैं / जिस शरीर के अंग और उपांग न्यूनता और अधिकता से रहित शास्त्रोक्त मान-उन्मान-प्रमाण वाले होते हैं, उसे समचतरत्र है / जिस शरीर में नाभि से ऊपर के अवयव तो शरीर-शास्त्र के अनुसार ठीक ठीक प्रमाणवाले हों किन्तु नाभि से नीचे के अवयव होन प्रमाण वाले हों, उसे न्यग्रोधसंस्थान कहते हैं। जिस शरीर में नाभि से नीचे के अवयव तो शरीर-शास्त्र के अनुरूप हों, किन्तु नाभि से ऊपर के अवयव उसके प्रतिकूल हों उसे सादिसंस्थान करते हैं / जिस शरीर के अवयव लक्षणयुक्त होते हुए भी विकृत और छोटे हों, तथा मध्यभाग में पीठ या छाती की ओर कूबड़ निकली हो, उसे कुब्जकसंस्थान कहते हैं। जिस शरीर में सभी अंग लक्षणशास्त्र के अनुरूप हों, पर शरीर बौना हो, उसे वामनसंस्थान कहते हैं। जिस शरीर में हाथ पैर आदि सभी अवयव शरीर-शास्त्र के प्रमाण से विपरीत हों उसे हुण्डसंस्थान कहते हैं / सभी नारकी जीव हुण्डसंस्थान वाले और सभी देव समचतुरस्र संस्थानवाले कहे गये हैं। शेष मनुष्य और तिर्यच छहों संस्थान वाले होते हैं / ६२२–णेरइया णं भंते ! किंसंठाणी पन्नत्ता / गोयमा ! हुंडसंठाणी पन्नत्ता / असुरकुमारा किसंठाणी पन्नत्ता ? गोयमा ! समचउरंससंठाणसंठिया पन्नत्ता / एवं जाव थणियकुमारा। भगवन् ! नारकी जीव किस संस्थानवाले कहे गये हैं ? गौतम ! नारक जीव हुंडकसंस्थान वाले कहे गये हैं। भगवन् ! असुरकुमार देव किस संस्थानवाले होते हैं ? गौतम ! असुरकुमार देव समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं / इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देव समचतुरस्र संस्थान वाले होते हैं / ६२३–पुढवी मसूरसंठाणा पन्नत्ता। प्राऊ थिबुयसंठाणा पन्नत्ता। तेऊ सूईकलावसंठाणा पण्णत्ता / वाऊ पडागासंठाणा पन्नत्ता / वणस्सई नाणासंठाणसंठिया पन्नत्ता। पृथिवीकायिक जीव मसूरसंस्थान वाले कहे गये हैं। अप्कायिक जीव स्तिबुक (बिन्दु) संस्थानवाले कहे गये हैं / तेजस्कायिक जीव सूचीकलाप संस्थानवाले (सुइयों के पुज के समान आकार वाले) कहे गये हैं / वायुकायिक जीव पताका-(ध्वजा-) संस्थानवाले कहे गये हैं। वनस्पति कायिक जीव नाना प्रकार के संस्थानवाले कहे गये हैं। ६२४-बेइंदिय-तेइंदिय-चरिदिय-सम्मुच्छिम-पंचेंदियतिरिक्खा हुडसंठाणा पन्नत्ता। गम्भवक्कंतिया छव्विहसंठाणा [पन्नत्ता] / संमुच्छिममणुस्सा हुंडसंठाणसंठिया पन्नत्ता। गन्भवतियाणं मणुस्साणं छब्बिा संठाणा पन्नत्ता / जहा असुरकुमारा तहा वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया वि / द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और सम्मूच्छिम पंचेन्द्रियतिथंच जीव हुंडक संस्थानवाले और गर्भोपक्रान्तिक तिर्यंच छहों संस्थानवाले कहे गये हैं। सम्मूच्छिम मनुष्य हुंडक संस्थानवाले तथा गर्भोपक्रान्तिक मनुष्य छहों संस्थानवाले कहे गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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