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________________ 212] [समवायानसूत्र विवेचन-- इस सूत्र में एकेन्द्रियादि की अपेक्षा तेजसशरीर के पांच भेद कहकर शेष तेजस शरीर की वक्तव्यता को प्रज्ञापनासूत्र के अनुसार जानने की सूचना की है, उसके अनुसार यहां दी जाती है-- [भगवन् ! एकेन्द्रियतैजस शरीर कितने प्रकार के कहे गये हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-पृथ्विीकाय एकेन्द्रियतैजसशरीर, अप्कायिक एकेन्द्रिक तेजसशरीर, तेजस्कायिक एकेन्द्रिय तेजसशरीर, वायुकायिक एकेन्द्रिय तैजसशरीर और वनस्पतिकायिक एकेन्द्रिय तेजसशरीर / इसी प्रकार यावत् अवेयक देवों के मारणान्तिक समुद्धातगत अवगाहना तक जानना चाहिए / यहां सूत्रकार ने शेष जीवों के तेजसशरीर का वर्णन न करके यावत् पद से प्रज्ञापनासूत्र में प्ररूपित जीवराशि की प्ररूपणा के अनुसार सूत्रार्थ को जानने की सूचना की है। प्रकृत में यह अभिप्राय है कि जिस जीव के शरीर की स्वाभाविक दशा में या समुद्धात आदि विशिष्ट अवस्था में जितनी अवगाहना होती है, उतनी ही तैजसशरीर की तथा कार्मणशरीर की अवगाहना जानना चाहिए। किस किस गति के जीव की शारीरिक अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट कितनी होती है, तथा कौन कौन से जीव समुद्धात दशा में कितने पायाम-विस्तार को धारण करते हैं, यह प्रज्ञापना सूत्र से जानना चाहिए। 603 ---गेवेज्जस्स णं भंते ! देवस्स णं मारणंतियसमुग्घाएणं समोहयस्स समाणस्स केमहालिया सरोरोगाहणा पन्नत्ता ? गोयमा ! सरीरप्पमाणमेत्ता विक्खंभबाहल्लेणं, पायामेणं जहन्नेणं अहे जाव विज्जाहरसेढीयो / उक्कोसेणं जाव अहोलोइयग्गामाओ। उड्ढं जाव सयाई विमाणाई, तिरियं जाव मणुस्सखेत्तं / एवं जाव अणुत्तरोववाइया / एवं कम्मयसरीरं भाणियत्वं / भगवन् ! मारणान्तिक समुद्घात को प्राप्त हुए |वेयक देव की शरीर-अवगाहना कितनी बड़ी कही गई है ? गौतम ! विष्कम्भ-बाहल्य की अपेक्षा शरीर-प्रमाणमात्र कही गई है और आयाम (लम्बाई) की अपेक्षा नीचे जघन्य यावत् विद्याधर-श्रेणी तक उत्कृष्ट यावत् अधोलोक के ग्रामों तक, तथा ऊपर अपने विमानों तक और तिरछी मनुष्यक्षेत्र तक कही गई है। ___ इसी प्रकार अनुत्तरोपपातिक देवों की जानना चाहिए / इसी प्रकार कार्मण शरीर का भी वर्णन कहना चाहिए। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र में मारणान्तिक समुद्घातगत ग्रैवेयक देव की शारीरिक अवगाहना का वर्णन कर अनुत्तर विमानवासी देवों की शरीर-अवगाहना और कार्मणशरीर-अवगाहना को जानने की सूचना की गई है। यह सूत्र मध्यदीपक है, अत: एकेन्द्रियों से लेकर पंचेन्द्रियों तक के तिर्यग्गति के तथा नारक, मनुष्य और देवगति के ग्रैवेयक देवों के पूर्ववर्ती सभी जीवों की स्वाभाविक शरीरअवगाहना, तथा मारणान्तिक समुद्धातगत-अवगाहना का वर्णन प्रज्ञापना सत्र के अनसार जानना चाहिए / यहां संक्षेप से कुछ लिखा जाता है पृथिवीकायिक आदि एकेन्द्रिय जीवों के शरीरों की जो जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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