________________ षडशीतिस्थानक समवाय। 1145 धातकीखंड के दोनों मन्दराचल भूमिगत अवगाढ तल से लेकर सर्वाग्न भाग (अंतिम ऊंचाई) तक पचासी हजार योजन कहे गये हैं। इसी प्रकार पुष्करवर द्वीपार्ध के दोनों मन्दराचल भी जानना चाहिए। रुचक नामक तेरहवें द्वीप का अन्तर्वर्ती गोलाकार मंडलिक पर्वत भूमिगत अवगाढ़ तल से लेकर सर्वाग्र भाग तक पचासी हजार योजन कहा गया है। अर्थात् इन सब पर्वतों की ऊंचाई पचासी हजार योजन की है। ४०२--नंदणवणस्स णं हेछिल्लाओ चरमंताओ सोगंधियस्स कंडस्स हेछिल्ले चरमंते एस णं पंचासीइ जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। नन्दनवन के अधस्तन चरमान्त भाग से लेकर सौगन्धिक काण्ड का अधस्तन चरमान्त भाग पचासी सौ (8500) योजन अन्तरवाला कहा गया है / विवेचन--मेरु पर्वत के भूमितल से नीचे सौगन्धिक काण्ड का तलभाग आठ हजार योजन है और नन्दनवन मेरु के भूमितल से पाँच सौ योजन की ऊंचाई पर अवस्थित है / अत: उसके अधस्तन तल से सौगन्धिक काण्ड का अधस्तन तल भाग (8000-500-8500) पचासी सौ योजन के अन्तरवाला सिद्ध हो जाता है। // पञ्चाशीतिस्थानक समवाय समाप्त / / षडशीतिस्थानक-समवाय 403 सुविहिस्स णं पुष्पदंतस्स अरहो छलसोई गणा छलसोई गणहरा होत्था। सुपासस्स णं अरहनो छलसोई वाइसया होत्था / सुविधि पुष्पदन्त अर्हत् के छयासी गण और छयासी गणधर थे। सुपार्श्व अर्हत् के छयासी सौ (8600) वादी मुनि थे। ४०४-दोच्चाए णं पुढवीए बहुमज्झदेसभागानो दोच्चस्स घणोदहिस्स हेढिल्ले चरमंते एस णं छलसीई जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। दूसरी पृथिवी के मध्य भाग से दूसरे घनोदधिवात का अधस्तन चरमान्त भाग छयासी हजार योजन के अन्तरवाला कहा गया है / विवेचन --दूसरी शर्करा पृथिवी एक लाख बत्तीस हजार योजन मोटी है, उसका आधा भाग छयासठ हजार योजन-प्रमाण है तथा उसी पृथिवी के नीचे का घनोदधिवात बीस हजार योजन मोटा है। इसलिए दूसरी पृथिवी के ठीक मध्य भाग से दूसरे घनोदधिवात का अन्तिम भाग (66+ 20 =86) छयासी हजार योजन के अन्तरवाला सिद्ध हो जाता है / // षडशीतिस्थानक समवाय समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org