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________________ चतुरशोतिस्थानक समवाय] [143 ३९४–पंकबहुलस्स णं कण्डस्स उवरिल्लानो चरमंतानो हेढिल्ले चरमते एस णं चोरासीई जोयणसयसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / पंकबहुल भाग के ऊपरी चरमान्त भाग से उसी का अधस्तन-नीचे का चरमान्त भाग चौरासी लाख योजन के अन्तर वाला कहा गया है / भावार्थ-रत्नप्रभा पृथिवी का दूसरा पंकबहुल कांड चौरासी लाख योजन मोटा है। ३९५--विवाहपन्नत्तीए णं भगवतीए चउरासीइं पयसहस्सा पदग्गेणं पण्णत्ता। व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक भगवतीसूत्र के पद-गणना की अपेक्षा चौरासी हजार पद (अवान्तर अध्ययन) कहे गये हैं। विवेचन-पाचारांग के 18 हजार पद हैं और अगले अगले अंगों के इससे दुगुने पद होने से भगवती के दो लाख अठासी हजार पद मतान्तर से सिद्ध होते हैं। ३९६---चोरासीई नागकुमारावाससयसहस्सा पण्णत्ता। चोरासोइं पन्नगसहस्साइं पण्णत्ता। चोरासीई जोणिप्पमुहसयसहस्सा पण्णत्ता। नागकुमार देवों के चौरासी लाख ग्रावास (भवन) हैं। चौरासी हजार प्रकीर्णक कहे गये हैं। चौरासी लाख जीव-योनियां कही गई हैं। विवेचन--जीवों के उत्पत्ति-स्थान को योनि कहते हैं / इसी को जन्म का आधार कहा जाता हैं / वे चौरासी लाख होती हैं। उनका विवरण इस प्रकार है (1) पृथिवी, जल, अग्नि और वायु इन चारों की सात-सात लाख योनियाँ (2800000) (2) प्रत्येक और साधारण वनस्पतिकाय की क्रमशः दश और चौदह लाख योनियां (2400000) (3) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रियों में प्रत्येक की दो-दो लाख योनियाँ (600000) (4) देवों की चार लाख योनियाँ (400000) .) नारकों की चार लाख योनियाँ (400000) तिर्यंच पंचेन्द्रियों की चार लाख योनियाँ (400000) (7) मनुष्यों की चौदह लाख योनियाँ (1400000) सर्वयोग 8400000 यद्यपि जीवों के उत्पत्ति स्थान असंख्यात प्रकार के होते हैं, तथापि जिन योनियों के वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श समान गुणवाले होते हैं, उनको समानता की विवक्षा से यहाँ एक योनि कहा गया है। ३९७–पुन्वाइयाणं सीसपहेलियापज्जवसाणाणं सट्ठाणढाणंतराणं चोरासीए गुणकारे पण्णते। पूर्व की संख्या से लेकर शीर्षप्रहेलिका नाम की अन्तिम महासंख्या तक स्वस्थान और स्थानान्तर चौरासी (लाख) के गुणकार बाले कहे गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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