________________ 140] [समवायाङ्गसूत्र योग (9-/-18 / 27 ---36-1-45-- 54+62+72+ 81 = 405) चार सौ पाँच होता है / गोचरीकाल के सिवाय शेष समय मौनपूर्वक आगम की प्राज्ञानुसार प्रात्माराधन में व्यतीत किया जाता है। ३८०--कुथुस्स णं अरहयो एक्कासीति मणपज्जवनाणिसया होत्था। विवाह-पन्नत्तीए एकासीति महाजुम्मसया पण्णत्ता। कुन्थु अर्हत के संघ में इक्यासी सौ (8100) मनःपर्यय ज्ञानी थे / व्याख्या-प्रज्ञप्ति में इक्यासी महायुग्मशत कहे गये हैं। विवेचन यहाँ 'शत' शब्द से अध्ययन का ग्रहण करना चाहिए। वे कृत युग्म, द्वापरयुग्म आदि अनेक राशि के विचार रूप अन्तराध्ययनरूप आगम से जानना चाहिए। ॥एकाशीतिस्थानक समवाय समाप्त / / द्वि-अशीतिस्थानक-समवाय ३८१--जंबुद्दीवे [f] दोवे वासीयं मंडलसयं जं सूरिए दुक्खुत्तो संकमित्ता णं चार चरइ / तं जहा–निक्खममाणे य पविसमाणे य।। इस जम्बूद्वीप में सूर्य एक सौ व्यासीवें मंडल को दो बार संक्रमण कर संचार करता है। जैसे-एक बार निकलते समय और दूसरी बार प्रवेश करते समय / विवेचन--सूर्य के संचार करने के मंडल (184) एक सौ चौरासी हैं। इनमें से सबसे भीतर जम्बूद्वीप वाले मंडल पर और सबसे बाहरी लवण समुद्र के मंडल पर तो वह एक-एक बार ही संचार करता है। शेष सभी मंडलों पर दो-दो बार संचार करता है--एक बार उत्तरायण के समय प्रवेश करते हुए और दूसरी बार दक्षिणायन के समय निष्क्रमण करते हुए / इस सूत्र में व्यासीवें स्थानक की अपेक्षा इसका निरूपण किया गया है। दूसरी बात यह ज्ञातव्य है कि यद्यपि जम्बूद्वीप के ऊपर सूर्य के केवल पैसठ ही मंडल होते हैं. फिर भी यहाँ धातकीखंड प्रादि के निराकरण करने के लिए तथा इसी द्वीप-सम्बन्धी सूर्य के संचार-क्षेत्र की विवक्षा से उन सभी मंडलों को 'जम्बूद्वीप' पद से उपलक्षित किया गया है। 382- समणे णं भगवं महावीरे वासोए राईदिएहि वोइक्कतेहिं गभानो गन्भं साहरिए। श्रमण भगवान् महावीर व्यासी रात-दिन बीतने के पश्चात् देवानन्दा ब्राह्मणी के गर्भ से त्रिशला क्षत्रियाणी के गर्भ में संहृत किये गये। ३८३-महाहिमवंतस्स णं वासहरपव्वयस्स उवरिल्लाओ चरमंतानो सोगंधियस्स कंडस्स हेट्रिल्ले चरमंते एस णं वासीइं जोयणसयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते / एवं रुप्पिस्स वि। महाहिमवन्त वर्षधर पर्वत के ऊपरी चरमान्त भाग से सौगन्धिक कांड का अधस्तन चरमान्त भाग व्यासी सौ (8200) योजन के अन्तरवाला कहा गया है। इसी प्रकार रुक्मी का भी अन्तर जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org