________________ प्रकाशकीय समवायांगसूत्र जैन सिद्धान्त का कोष-ग्रन्थ है / सामान्य जनों को जैनधर्म से सम्बन्धित विषयों का बोध प्राप्त होता है। शोधाथियों को अपने अपेक्षित विषयों के लिए उपयोगी आवश्यक संकेत उपलब्ध होने से इस प्रागम ग्रन्थ का अध्ययन, चिन्तन, मनन अनिवार्य है। समवायांगसूत्र की प्रतिपादन शैली अनठी है। इसमें प्रतिनियत संख्या वाले पदार्थों का एक से लेकर सौ स्थान पर्यन्त विवेचन करने के बाद अनेकोत्तरिक वृद्धि समवाय का कथन करने के साथ द्वादशांगगणिपिटक एवं विविध विषयों के परिचय का समावेश किया गया है। श्री पागम प्रकाशन समिति ने स्मरणीय उद्देश्य को ध्यान में रखकर आगमों के प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया था। पूज्य स्व. स्वामीजी श्री ब्रजलालजी म. की प्रेरणा और स्व. युवाचार्य श्री मधुकरमुनिजी म. सा. के दिशा-निर्देश एवं अन्यान्य विद्वद्वयं मुनिराजों, विद्वानों के सहयोग से समिति दिनानुदिन अपने लक्ष्य की ओर प्रगति करती रही है। पाठकों की संख्या में वृद्धि होती जाने से अभी तक प्रकाशित अनेक ग्रन्थों के प्रथम संस्करण अप्राप्य जैसे हो गये / अतः पाठकों की उत्तरोत्तर मांग बढ़ते जाने से ग्रन्थों के द्वितीय संस्करण प्रकाशित करने का निश्चय किया गया है। अभी तक प्राचारांगसूत्र भाग-१,२ व ज्ञाताधर्मकथांग, उपासकदशांग, अन्त:कृद्दशांग, अनुत्तरोपपातिक सूत्र के प्रथम संस्करण अप्राप्य हो जाने से पुनर्मुद्रण हो चुका है और समवायांगसूत्र का यह द्वितीय संस्करण है। शेष ग्रन्थों का भी समयानुसार दूसरा संस्करण प्रकाशित किया जायेगा। जिससे पूरी आगम बत्तीसी सभी ग्रन्थ भंडारों प्रादि में संकलित हो सके एवं स्वाध्यायप्रेमी सज्जन लाभ ले सकें। यद्यपि लागत व्यय में वृद्धि होने से ग्रन्थों का मूल्य कुछ बढ़ाना पड़ा है, परन्तु यह मूल्यवृद्धि भी लागत से कम और न कुछ जैसी है। अन्त में हम पागमप्रकाशन कार्य के लिये अपने सभी सहयोगियों का सधन्यवाद आभार मानते हैं / रतनचन्द मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष बालबाब मोदी सायरमल चोरडिया महामंत्री श्री आगम प्रकाशन समिति, न्यावर सायरमलम चोरडिया अमरचन्द मोदी अमरचन्द मोदी मंत्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org