________________ स्थानान के प्रकाशन में विशिष्ट अर्थसहयोगी श्री सुगनचन्दजी चोरड़िया : संक्षिप्त परिचय श्री “वालाराम पृथ्वीराज की पेड़ो'' अहमदनगर महाराष्ट्र में बड़ी शानदार और प्रसिद्ध थी। दूर-दूर पेढ़ी की महिमा फैली हुई थी / साख व धाक थी। इस पेढ़ी के मालिक सेठ श्री बालारामजी मूलत: राजस्थान के अन्तर्गत मरुधरा के सुप्रसिद्ध गांव नोखा चान्दावतों के निवासी थे। श्री बालारामजी के भाई का नाम छोटमलजी था। छोटमलजी के चार पुत्र हुए 1. लिखमीचन्दजी 2. हस्तीमलजी 3. चान्दमलजी 4. सूरजमलजी श्रीयुत सेठ सुगनचन्दजी श्री लिखमीचन्दजी के सुपुत्र हैं / आपकी दो शादियाँ हुई थीं। पहली पत्नी से अापके तीन पुत्र हुए:--- 1. दीपचन्दजी 2. मांगीलालजी 3. पारसमलजी दूसरी पत्नी से आप तीन पुत्र एवम् सात पुत्रियों के पिता बने / आपके ये तीन पुत्र हैं:१. किशनचन्दजी 2. रणजीतमलजी 3. महेन्द्रकुमारजी श्री सुगनचन्दजी पहले अपनी पुरानी पेढ़ी पर अहमदनगर में ही अपना व्यवसाय करते थे। बाद में प्राप व्यवसाय के लिये रायचर (कर्नाटक) चले गए और वहाँ से समय पाकर ग्राप उलुन्दर पेठ पहुंच गए। उल पहुँच कर आपने अपना अच्छा कारोबार जमाया। अापके व्यवसाय के दो प्रमुख कार्यक्षेत्र हैं---फाइनेन्स और बैकिंग / आपने अपने व्यवसाय में अच्छी प्रगति की। आज अापके पास अपनी अच्छी सम्पन्नता है। अभी-अभी आपने मद्रास को भी अपना व्यावसायिक क्षेत्र बनाया है / मद्रास के कारोबार का संचालन आपके सुपुत्र श्री किशनचन्दजी कर रहे हैं। श्री सुगनचन्दजी एक धार्मिक प्रकृति के सज्जन पुरुष हैं / संत मुनिराज-महासतियों की सेवा करने की मापको अच्छी अभिरुचि है।। मुनि श्री हजारीमल स्मृति प्रकाशन के आप संरक्षक सदस्य हैं / प्रस्तुत प्रकाशन में आपने एक अच्छी अर्थ-राशि का सहयोग दिया है। एतदर्थ संस्था आपकी आभारी है। आशा है, समय समय पर इसी प्रकार अर्थ-सहयोग देकर माप संस्था को प्रगतिशील बनाते रहेंगे। 00 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org