________________ 732] [ स्थानांगसूत्र / धर्म दश प्रकार का कहा गया है। जैसे१. ग्रामधर्म-गाँव की परम्परा या व्यवस्था का पालन करना। 2. नगरधर्म-नगर की परम्परा या व्यवस्था का पालन करना / 3. राष्ट्रधर्म-राष्ट्र के प्रति कर्तव्य का पालन करना। 4. पाषण्डधर्म-पापों का खंडन करने वाले आचार का पालन करना / 5. कुलधर्म-कुल के परम्परागत प्राचार का पालन करना / 6. गणधर्म-..गणतंत्र राज्यों की परम्परा या व्यवस्था का पालन करना। 7 संघधर्म-संघ की मर्यादा और व्यवस्था का पालन करना / 8. श्रुतधर्म- द्वादशांग श्रु त की आराधना या अभ्यास करना / 9. चारित्रधर्म-संयम की आराधना करना, चारित्र का पालना / 10. अस्तिकायधर्म–अस्तिकाय अर्थात् बहुप्रदेशी द्रव्यों का धर्म (स्वभाव) (135) / स्थविर-सूत्र १३६–दस थेरा पण्णता, तं जहा—गामथेरा, गगरथेरा, रटुथेरा, पसस्थथेरा, कुलथेरा, गणथेरा, संघथेरा, जातिथेरा, सुप्रथेरा, परियायथेरा। स्थविर (ज्येष्ठ या वृद्ध ज्ञानी पुरुष) दश प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. ग्राम-स्थविर–गाम का व्यवस्थापक, ज्येष्ठ, वृद्ध और ज्ञानी पुरुष / 2. नगर-स्थविर-नगर का व्यवस्थापक, ज्येष्ठ, वृद्ध और ज्ञानी पुरुष / 3. राष्ट्र-स्थविर राष्ट्र का व्यवस्थापक, ज्येष्ठ, वृद्ध और ज्ञानी पुरुष / 4. प्रशास्तृ-स्थविर-प्रशासन करने वाला प्रधान अधिकारी। 5. कुल-स्थविर-लौकिक पक्ष में कुल का ज्येष्ठ या वृद्ध पुरुष / ____ लोकोत्तर पक्ष में एक आचार्य की शिष्य परम्परा में ज्येष्ठ साधु / 6. गण-स्थविर-लौकिक पक्ष में गणराज्य का प्रधान पुरुष / लोकोत्तर पक्ष में साधुओं के गण में ज्येष्ठ साधु / 7. संघ-स्थविर-लौकिक पक्ष में राज्य संघ का प्रधान पुरुष / ___लोकोत्तर पक्ष में साधुसंघ का ज्येष्ठ साधु / 8. जाति-स्थविर-साठ वर्ष या इससे अधिक आयुवाला वृद्ध / 1. श्रुत-स्थविर स्थानांग और समवायांग श्रत का धारक साधु / 10. पर्याय-स्थविर-बीस वर्ष की या इससे अधिक की दीक्षा पर्यायवाला साधु (136) / पुत्र-सूत्र १३७--दस पुत्ता पण्णता, तं जहा–अत्तए, खेत्तए, दिण्णए, विष्णए, उरसे, मोहरे, सोंडीरे संवुड, उवयाइते, धम्मंतेवासी। पुत्र दश प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. पात्मज-अपने पिता से उत्पन्न पुत्र / 2. क्षेत्रज-नियोग-विधि से उत्पन्न पुत्र / 3. दत्तक-गोद लिया हुआ पुत्र / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org