________________ 730 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 7. अनन्तर-पर्याप्त नारक-प्रथम समय के पर्याप्त / 8. परम्पर-पर्याप्त नारक-दो आदि समयों के पर्याप्त / 6. चरम-नारक नरकगति में अन्तिम वार उत्पन्न होने वाले / 10. अचरम-नारक---जो प्रागे भी नरकगति में उत्पन्न होंगे। इसी प्रकार वैमानिक तक के सभी दण्डकों में जीवों के दश-दश प्रकार जानना चाहिए (123) / नरक-सूत्र १२४-चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए दस णिरयावाससतसहस्सा पण्णत्ता। चौथी पंकप्रभा पृथिवी में दश लाख नारकावास कहे गये हैं (124) / स्थिति-सूत्र १२५–रयणप्पभाए पुढवीए जहण्णेणं णेरइयाणं दसवाससहस्साई ठिती पण्णत्ता / रत्नप्रभा पृथिवी में नारकों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है (125) / १२६-~-चउत्थीए णं पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसेणं गैरइयाणं दस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। चौथी पंकप्रभा पृथिवी में नारकों की उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम की कही गई है (126) / १२७–पंचमाए णं धूमप्पभाए पुढवीए जहणेणं णेरइयाणं दस सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता। पांचवीं धूमप्रभा पृथिवी में नारकों की जघन्य स्थिति दश सागरोपम की कही गई है (127) / १२८-असुरकुमाराणं जहण्णणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णता। एवं जाव थणिय कुमाराणं। असुरकुमार देवों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है। इसी प्रकार स्तनितकुमार तक के सभी भवनवासी देवों की जघन्य आयु दश हजार वर्ष की कही गई है (128) / १२६–बायरवणस्सतिकाइयाणं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता। बादर वनस्पतिकायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है (126) / १३०-वाणमंतराणं देवाणं जहणणं दस वाससहस्साई ठिती पण्णत्ता। वानव्यन्तर देवों की जघन्य स्थिति दश हजार वर्ष की कही गई है (130) / १३१–बंभलोगे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं दस सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। ब्रह्मलोककल्प में देवों की उत्कृष्ट स्थिति दश सागरोपम की कही गई है (131) / १३२-लंतए कप्पे देवाणं जहण्णेणं दस सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता / लान्तक कल्प में देवों की जघन्य स्थिति दश सागरोपम की कही गई है (132) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org