________________ 578] [ स्थानाङ्गसूत्र प्रतिमा-सूत्र 13- सत्तसत्तमिया णं भिक्खुपडिमाए कणपण्णताए राइदिएहिं एगेण य छण्णउएणं भिक्खासतेणं अहासुत्तं (प्रहाप्रत्थं अहातच्चं अहामग्गं अहाकप्पं सम्मं कारणं फासिया पालिया सोहिया तोरिया किट्टिया) आराहिया यावि भवति / सप्तसप्तमिका (747-) भिक्षुप्रत्तिमा 46 दिन-रात, तथा 196 भिक्षादत्तियों के द्वारा यथासूत्र, यथा-अर्थ, यथा तत्त्व, यथा मार्ग, यथा कल्प, तथा सम्यक् प्रकार काय से प्राचीर्ण, पालित, शोधित, पूरित, कीत्तित और पाराधित की जाती है (13) / विवेचन—साधुजन विशेष प्रकार का अभिग्रह या प्रतिज्ञारूप जो नियम अंगीकार करते हैं, उसे भिक्षुप्रतिमा कहते हैं / भिक्षुप्रतिमाएं 12 कही गई हैं, उनमें से सप्तसप्तमिका प्रतिमा सात सप्ताहों में क्रमश: एक-एक भक्त-पानको दत्ति-द्वारा सम्पन्न की जाती है, उस का क्रम इस प्रकार है प्रथम सप्तक या सप्ताह में प्रतिदिन 1-1 भक्त-पान दत्ति का योग 7 भिक्षादत्तियां / द्वितीय सप्तक में प्रतिदिन 2-2 भक्त-पान दत्तियों का योग 14 भिक्षादत्तियां / तृतीय सप्तक में प्रतिदिन 3-3 भक्त-पान दत्तियों का योग 21 भिक्षादत्तियां / चतुर्थ सप्तक में प्रतिदिन 4-4 भक्त-पान दत्तियों का योग 28 भिक्षादत्तियां / पंचम सप्तक में प्रतिदिन 5-5 भक्त-पान दत्तियों का योग 35 भिक्षादत्तियां। षष्ठ सप्तक में प्रतिदिन 6-6 भक्त-पान दत्तियों का योग 42 भिक्षादत्तियां / सप्तम सप्तक में प्रतिदिन 7-7 भक्त-पान दत्तियों का योग 46 भिक्षादत्तियां / इस प्रकार सातों सप्ताहों के 46 दिनों की भिक्षादत्तियां 166 होती हैं। इसलिए सूत्र में कहा गया है कि यह सप्तसप्तामिका भिक्षुप्रतिमा 46 दिन और 166 भिक्षादत्तियों के द्वारा यथाविधि आराधित की जाती है / अधोलोकस्थिति-सूत्र १४-पहेलोगे णं सत्त पुढवीनो पण्णत्तायो। अधोलोक में सात पृथिवियाँ कही गई हैं (14) / 15-- सत्त धणोदधीप्रो पण्णत्ताप्रो / अधोलोक में सात घनोदधि वात कहे गये हैं (15) / १६--सत्त घणवाता पणत्ता। अधोलोक में सात घनवात कहे गये हैं (16) / १७-सत्त तणुवाता पण्णत्ता। अधोलोक में सात तनुवात कहे गये हैं (17) / १८–सत्त प्रोवासंतरा पण्णत्ता। अधोलोक में सात अवकाशान्तर (तनुवात, घनवात आदि के मध्यवर्ती अन्तराल क्षेत्र) कहे गये हैं। (18) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org