________________ 562 ] [ स्थानाङ्गसूत्र महावीर-षष्ठभक्त-सूत्र ___ १०४-समणे भगवं महावीरे छट्टणं भत्तेणं अपाणएणं मुडे (भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं) पव्वइए। श्रमण भगवान् महावीर अपानक (जलादिपान-रहित) षष्ठभक्त अनशन (दो-उपवास) के साथ मुण्डित होकर अगार से अनगारिता में प्रवजित हुए (104) / १०५–समणस्स णं भगवत्रो महावीरस्स छ?णं भत्तेणं अपाणएणं अणते अणुत्तरे (णिव्वाघाए णिरावरणे कसिणे पडिपुण्णे केवलवरणाणदंसणे) समुप्पण्णे / श्रमण भगवान महावीर को अपानक षष्ठभक्त के द्वारा अनन्त, अनुत्तर, निर्व्याघात, निरावरण, कृत्स्न, परिपूर्ण केवलवर ज्ञान-दर्शन उत्पन्न हुआ (105) / १०६-समणे भगवं महावीरे छट्ठणं भत्तेणं अपाणएणं सिद्ध (बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिन्डे) सम्वदुक्खप्पहीणे। श्रमण भगवान महावीर अपानक षष्ठभक्त से सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत परिनिर्वत, और सर्व दुःखों से रहित हुए (106) / विमान-सूत्र १०७-सणंकुमार-माहिदेसु णं कप्पेसु विमाणा छ जोयणसयाई उड्ढंउच्चत्तेणं पण्णत्ता। सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्प के विमान छह सौ योजन उत्कृष्ट ऊँचाई वाले कहे गए हैं (107) / देव-सूत्र १०८----सणंकुमार-माहिदेसु णं कप्पेसु देवाणं भवधारणिज्जगा सरीरगा उक्कोसेणं छ रयणीप्रो उड्ढं उच्चत्तेणं पण्णत्ता। सनत्कुमार और माहेन्द्रकल्प के देवों के भवधारणीय शरीर छह रालिप्रमाण उत्कृष्ट ऊंचाई वाले कहे गये हैं (108) / भोजन-परिणाम-सूत्र १०६-छविहे भोयणपरिणामे पण्णत्ते, तं जहा--मणुण्णे, रसिए, पीणणिज्जे, बिहणिज्जे, मयणिज्जे, दप्पणिज्जे। भोजन का परिणाम या विपाक छह प्रकार का कहा गया है जैसे१. मनोज्ञ-मन में आनन्द उत्पन्न करने वाला। 2. रसिक-विविधरस-युक्त व्यंजन वाला। 3. प्रीणनीय-रस-रक्तादि धातुओं में समता लाने वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org