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________________ पंचम स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 506 से समासो पंचविधे पण्णत्त', तं जहा–दम्वो, खेत्तो, कालो, भावो, गुणयो। दवनो णं पोग्गलस्थिकाए अणंताई दवाई। खेतमो लोगपमाणमेत / कालो ण कयाइ णासि, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति---भुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अव्वए अद्विते णिच्चे। भावप्रो वण्णमंते गंधमते रसमंते फासमंते। गुणो गहणगुणे। पुद्गलास्तिकाय पंच वर्ण, पंच रस, दो गन्ध, अष्ट स्पर्श वाला, रूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का एक अंशभूत द्रव्य है / वह संक्षेप से पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे 1. द्रव्य की अपेक्षा, 2. क्षेत्र की अपेक्षा, 3. काल की अपेक्षा, 4. भाव की अपेक्षा 5. गुण की अपेक्षा / 1. द्रव्य की अपेक्षा-पुद्गलास्तिकाय अनन्त द्रव्य हैं। 2. क्षेत्र की अपेक्षा-पुद्गलास्तिकाय लोक प्रमाण है, अर्थात् लोक में ही रहता है --बाहर नहीं। 3. काल की अपेक्षा--पुद्गलास्तिकाय, कभी नहीं था, ऐसा नहीं है कभी नहीं; है, ऐसा भी नहीं है; कभी नहीं होगा, ऐसा भी नहीं है। वह भूतकाल में था, वर्तमानकाल में है और भविष्यकाल में रहेगा / अतः वह ध्रुव, निचित, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। 4. भाव की अपेक्षा-पुद्गलास्तिकाय वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान् और स्पर्शवान् है। 5. गुण की अपेक्षा-पुदुगलास्तिकाय ग्रहण गुणवाला है। अर्थात् औदारिक आदि शरीर रूप से ग्रहण किया जाता है और इन्द्रियों के द्वारा भी वह ग्राह्य है। अथवा पूरण-गलन गुणवालामिलने-विछुड़ने का स्वभाव वाला है / (174) गति-सूत्र १७५-पंच गतीनो पण्णत्तानो, तं जहा–णिरयगती, तिरियगती, मणुयगती, देवगती, सिद्धिगती। गतियां पाँच कहो गई हैं / जैसे१. नरकगति, 2. तिर्यंचगति, 3. मनुष्यगति, 4. देवगति 5. सिद्धगति / (175) इन्द्रियार्थ-सूत्र १७६-पंच इंदियत्था पण्णत्ता, तं जहा-सोतिदियत्थे, चक्खिदियत्थे, घाणियित्थे, जिभिदियत्थे, फासिदियत्थे। इन्द्रियों के पाँच अर्थ (विषय) कहे गये हैं / जैसे 1. श्रोत्रेन्द्रिय का अर्थ शब्द, 2. चक्षुरिन्द्रिय का अर्थ रूप, 3. घ्राणेन्द्रिय का अर्थ गन्ध, 4. रसनेन्द्रिय का अर्थ रस, 5. स्पर्शनेन्द्रिय का अर्थ स्पर्श / (176) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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