________________ पंचम स्थान-तृतीय उद्देश ] [ 507 १७१-अधम्मस्थिकाए अवण्णे (अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए प्रवट्टिए लोगदम्वे। से समासो पंचविधे पण्णत्ते, तं जहा--दव्वरो, खेत्तो, कालो, मावो, गुणो। दयो अधम्मत्थिकाए एग दव्वं / खेत्तो लोगपमाणमेत / कालम्रो ण कयाइ पासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण:भविस्सइत्ति-भुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते अक्खए अन्वए अवट्टिते णिच्चे। भावप्रो प्रवणे अगंधे अरसे प्रफासे / गुणनो ठाणगुणे। अधर्मास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस, अस्पर्श, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित और लोक का अंशभूत द्रव्य है। वह संक्षेप में पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे 1. द्रव्य की अपेक्षा, 2. क्षेत्र की अपेक्षा, 3. काल की अपेक्षा, 4. भाव की अपेक्षा, 5. गुण की अपेक्षा। 1. द्रव्य की अपेक्षा-अधर्मास्तिकाय एक द्रव्य है। 2. क्षेत्र की अपेक्षा-अधर्मास्तिकाय लोकप्रमाण है। 3. काल को अपेक्षा-अधर्मास्तिकाय कभी नहीं था, ऐसा नहीं है ; कभी नहीं है। ऐसा नहीं है, कभी नहीं होगा, ऐसा नहीं है / वह भूतकाल में था, वर्तमान में है और भविष्य में रहेगा। अत: वह ध्रुव, निचित, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित और नित्य है। 4. भाव की अपेक्षा अधर्मास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस और अस्पर्श है। 5. गुण की अपेक्षा---अधर्मास्तिकाय अवस्थान गुणवाला है। अर्थात् स्वयं ठहरने वाले जीव और पुद्गलों के ठहरने में सहायक है / (171) १७२–प्रागासस्थिकाए अवणे अगंधे अरसे अफासे अरूवी अजीवे सासए अवढ़िए लोगालोगदव्वे / से समासो पंचविधे पण्णते, तं जहा–दव्वरो, खेत्तमो, कालो, भावप्रो, गुणनो। दव्वनो णं प्रागासस्थिकाए एगं दवं। खेत्तनो लोगालोगपमाणमेत। कालो ण कयाइ गासी, ण कयाइ ण भवति, ण कयाइ ण भविस्सइत्ति-भुवि च भवति य भविस्सति य, धुवे णिइए सासते प्रक्खए अव्वए प्रवट्टिते णिच्चे। भावप्रो अवणे अगंधे अरसे अफासे / गुणो अवगाहणागुणे। आकाशास्तिकाय अवर्ण, अगन्ध, अरस, अस्पर्श, अरूपी, अजीव, शाश्वत, अवस्थित पोर लोकालोक रूप द्रव्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org