________________ पंचम स्थान--द्वितीय उद्देश ] [ 465 5. तप और ब्रह्मचर्य के परिपाक से दिव्य गति को प्राप्त देवों का अवर्णवाद करता हुआ (133) / १३४--पंचहि ठाणेहि जीवा सुलभबोधियत्ताए कम्मं पकरेंति, तं जहा–अरहताणं वण्णं वदमाणे, (अरहंतपण्णत्तस्स धम्मस्स बण्णं वदमाणे, आयरियउवज्झायाणं वष्णं वदमाणे, चाउवण्णस्स सघस्स वण्णं वदमाणे), विवक्क-तव-बंभचेराणं देवाणं वणं बदमाणे। पांच कारणों से जीव सुलभबोधि करने वाले कर्म का उपार्जन करता है / जैसे१. अर्हन्तों का वर्णवाद (सद्-गुणोद्भावन) करता हुआ। 2. अर्हत्प्रज्ञप्त धर्म का वर्णवाद करता हुआ। 3. प्राचार्य-उपाध्याय का वर्णवाद करता हुआ / 4. चतुर्वर्ण संध का वर्णवाद करता हुआ। 5. तप और ब्रह्मचर्य के विपाक से दिव्यगति को प्राप्त देवों का वर्णवाद करता हुआ (134) / प्रतिसंलोन-अप्रतिसंलीन-सूत्र १३५-पंच पडिसंलोणा पण्णत्ता, तं जहा-सोइंदियपडिसंलोणे, (क्खिदियपडिसंलोणे, धाणिदियपडिसलीणे, जिभिदियपडिसलीणे), फासिदियपडिसंलोणे / प्रतिसंलीन (इन्द्रिय-विषय-निग्रह करने वाला) पांच प्रकार का कहा गया है / जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-प्रतिसंलीन–शुभ-अशुभ शब्दों में राग-द्वेष न करने वाला। 2. चक्षुरिन्द्रिय-प्रतिसंलीन-शुभ-अशुभ रूपों में राग-द्वेष न करने वाला। 3. घ्राणेन्द्रिय-प्रतिसंलीन–शुभ-अशुभ गन्ध में राग-द्वेष न करने वाला। 4. रसनेन्द्रिय-प्रतिसंलीन–शुभ-अशुभ रसों में राग-द्वेष न करने वाला।। 5. स्पर्शनेन्द्रिय-प्रतिसंलीन–शुभ-अशुभ स्पर्शों में राग-द्वेष न करने वाला (135) / 136 –पंच अपडिसंलोणा पणत्ता, त जहा सोतिदियअपडिसंलोणे, (चविखदियनपडिसंलोणे, घाणिदियअपडिसंलोणे, जिभिदियअपडिसंलोणे), फासिदियअडिसंलोणे / अप्रतिसंलीन (इन्द्रिय-विषय-प्रवर्तक) पांच प्रकार का कहा गया है। जैसे१. श्रोत्रेन्द्रिय-अप्रतिसलीन---शुभ-अशुभ शब्दों में राग-द्वेष करने वाला। 2. चक्षुरिन्द्रिय-अप्रतिसंलीन–शुभ-अशुभ रूपों में राग-द्वेष करने वाला। 3. घ्राणेन्द्रिय-अप्रतिसंलीन-शुभ-अशुभ गन्ध में राग-द्वेष करने वाला। 4. रसनेन्द्रिय-अप्रतिसंलीन-शुभ-अशुभ रसों में राग-द्वेष करने वाला / 5. स्पर्शनेन्द्रिय-अप्रतिसंलीन–शुभ-अशुभ स्पर्शों में राग-द्वेष करने वाला (136) / संवर-असंवर-सूत्र १३७-पंचविधे संवरे पण्णत्ते, त जहा–सोतिदियसंबरे, (चक्खिदियसंवरे, घाणिदियसंवरे, जिभिदियसंवरे), फासिदियसंवरे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org