________________ 450 ] [ स्थानाङ्गसूत्र 1. शब्द, 2. रूप, 3. गन्ध, 4. रस, 5. स्पर्श (12) / १३–पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं हिताए सुभाए, जाव (खमाए णिस्सेस्साए) प्राणुगामियत्ताए भवंति, त जहा-सद्दा, जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा / सुपरिज्ञात (सुज्ञात और प्रत्याख्यात) पांच स्थान जीवों के हित के लिए, शुभ के लिए, क्षम (सामर्थ्य) के लिए, निःश्रेयस् (कल्याण) के लिए और अनुगामिता (मोक्ष) के लिए होते हैं। जैसे 1, शब्द, 2. रूप, 3. गन्ध, 4. रस, 5. स्पर्श (13) / १४--पंच ठाणा अपरिण्णाता जीवाणं दुग्गतिगमणाए भवंति, त जहा–सद्दा, जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा। अपरिज्ञात (अज्ञात और अप्रत्याख्यात) पांच स्थान जीवों के दुर्गतिगमन के लिए कारण होते हैं। जैसे 1. शब्द, 2. रूप, 3. गन्ध, 4. रस, 5. स्पर्श (14) / १५-पंच ठाणा सुपरिण्णाता जीवाणं सुग्गतिगमणाए भवंति, त जहा---सद्दा, जाव (रूवा, गंधा, रसा), फासा। सुपरिज्ञात (सुज्ञात और प्रत्याख्यात) पूर्वोक्त पांच स्थान जीवों के सुगतिगमन के लिए कारण होते हैं (15) / आस्रव-संवर-सूत्र १६-पंचहि ठाणेहि जीवा दोग्गति गच्छति, त जहा-पाणातिवातेणं जाव (मुसावाएणं, अदिण्णादामेणं, मेहुणेणं), परिग्गहेणं / पांच कारणों से जीव दुर्गति में जाते हैं / जैसे१. प्राणातिपात से, 2. मृषावाद से, 3. अदत्तादान से, 4. मैथुन से, 5. परिग्रह से (16) / १७-पंचहि ठाणेहि जोवा सोगति गच्छंति, तं जहा-पाणातिवातवेरमणेणं जाव (मुसावायवेरमणेणं, अदिण्णादाणवेरमणेणं, मेहुणवेरमणेणं), परिग्गहवेरमणेणं / पांच कारणों से जीव सुगति में जाते हैं / जैसे१. प्राणातिपात के विरमण से, 2. मृषावाद के विरमण से, 3. अदत्तादान के विरमण से, 4. मैथुन के विरमण से, 5. परिग्रह के विरमण से (17) / प्रतिमा-सूत्र १८-पंच पडिमानो पण्णत्तानो, त जहा-भद्दा, सुभद्दा, महाभद्दा, सव्वतोभद्दा, भदुत्तरपडिमा। प्रतिमाएं पांच कही गई हैं जैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org