________________ 446 ] [स्थानाङ्गसूत्र ६६०-चउपदेसोगाढा पोग्गला अणंता पण्णत्ता / आकाश के चार प्रदेशों में अवगाहना वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (660) / ६६१-चउसमयद्वितीया पोग्गला अणंता पण्णत्ता। चार समय की स्थिति वाले पुद्गलस्कन्ध अनन्त कहे गये हैं (661) / ६६२-चउगुणकालगा पोग्गला अणंता जाव चउगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। चार काले गुण वाले पुद्गल अनन्त कहे गये हैं (662) / इसी प्रकार सभी वर्ण, सभी गन्ध, सभी रस और सभी स्पर्शों के चार-चार गुण वाले पुद्गल अनन्त अनन्त कहे गये हैं। // चतुर्थ उद्देश का चतुर्थ स्थान समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org