________________ 426] [ स्थानाङ्गसूत्र 2. पूर्ण और अपदल---कोई कुम्भ जल आदि से पूर्ण होने पर भी अपदल (पूर्ण पक्व न होने के कारण असार) होता है / 3. तुच्छ और प्रियार्थ-कोई कुम्भ जलादि से अपूर्ण होने पर भी प्रियार्थ होता है। 4. तुच्छ और अपदल—कोई कुम्भ जलादि से भी अपूर्ण होता है और अपदल (अपूर्ण पक्व ___ न होने के कारण असार) होता है (583) / इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. पूर्ण और प्रियार्थ—कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रु त आदि से भी पूर्ण होता है और प्रियार्थ (परोपकारी होने से प्रिय) भी होता है। 2. पूर्ण और अपदल-कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से पूर्ण होता है, किन्तु अपदल (परोपकारादि न करने से असार) होता है। 3. तुच्छ और प्रियार्थ—कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रुत आदि से अपूर्ण होने पर भी परोपकारादि करने से प्रियार्थ होता है। 4. तुच्छ और अपदल—कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रु त आदि से भी अपूर्ण होता है और परोपकारादि न करने से अपदल (असार) भी होता है (563) / ५९४–चत्तारि कुभा पण्णता, त जहा-पुण्णेवि एगे विस्संदति, पुण्णेवि एगे गो विस्संदति, तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छेवि एगे णो विस्संदति / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तजहा-पुणेवि एगे विस्संदति, (पुणेवि एगे णो विस्संदति, तुच्छेवि एगे विस्संदति, तुच्छेवि एगे णो विस्संदति / ) पुनः कुम्भ चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे--- 1. पूर्ण और विष्यन्दक—कोई कुम्भ जल से पूर्ण होता है और झरता भी है। 2. पूर्ण और अविष्यन्दक-कोई कुम्भ जल से पूर्ण होता है और झरता भी नहीं है। 3. तुच्छ, विष्यन्दक–कोई कुम्भ अपूर्ण भी होता है और झरता भी है। 4. तुच्छ और अविष्यन्दक—कोई कुम्भ अपूर्ण होता है और झरता भी नहीं है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. पूर्ण और विष्यन्दक—कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रु तादि से पूर्ण होता है और उपकारादि करने से विष्यन्दक भी होता है। 2. पूर्ण और अविष्यन्दक–कोई पुरुष सम्पत्ति-श्र तादि से पूर्ण होने पर भी उसका उपकारादि में उपयोग न करने से अविष्यन्दक होता है। 3. तुच्छ, विष्यन्दक—कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रु तादि से अपूर्ण होने पर भी प्राप्त अर्थ को उपकारादि में लगाने से विष्यन्दक भी होता है। 4. तुच्छ, अविष्यन्दक–कोई पुरुष सम्पत्ति-श्रु तादि से अपूर्ण होता है और अविष्यन्दक भी होता है (564) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org