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________________ चतुर्थ स्थान - चतुर्थ उद्देश ] [ 403 3. जोमूत महामेघ एक वर्षा से दश वर्ष तक भूमि को जल से स्निग्ध कर देता है। 4. जिम्ह महामेघ बहुत वार बरस कर एक वर्ष तक भूमि को जल से स्निग्ध करता है, ___और नहीं भी करता है (540) / विवेचन यद्यपि मूल-सूत्र में पुष्कलावर्त आदि मेघों के समान चार प्रकार के पुरुषों का कोई उल्लेख नहीं है, तथापि टीकाकार ने उक्त चारों प्रकार के मेघों के समान पुरुषों के स्वयं जान लेने की सूचना अवश्य की है, जिसे इस प्रकार से जानना चाहिए 1. कोई दानी या उपदेष्टा पुरुष पुष्कलावर्त मेघ के समान अपने एक वार के दान से या उपदेश से वहुत लम्बे काल तक अर्थी--याचकों को और जिज्ञासुओं को तृप्त कर देता है। 2. कोई दानी या उपदेष्टा पुरुष प्रद्युम्न मेघ के समान बहुत काल तक अपने दान या उपदेश से अर्थी और जिज्ञासुओं को तृप्त कर देता है। 3. कोई दानी या उपदेष्टा पुरुष जीमूत मेघ के समान कुछ वर्षों के लिए अपने दान या उपदेश से अर्थी और जिज्ञासुओं को तृप्त करता है। 4. कोई दानी या उपदेष्टा पुरुष अपने अनेक वार दिये गये दान या उपदेश से अर्थी और जिज्ञासु जनों को एक वर्ष के लिए तृप्त करता है और कभी तृप्त कर भी नहीं पाता है / भावार्थ-जैसे चारों प्रकार के मेघों का प्रभाव उत्तरोत्तर अल्प होता जाता है उसी प्रकार दानी या उपदेष्टा के दान या उपदेश की मात्रा और प्रभाव उत्तरोत्तर अल्प होता जाता है। आचार्य-सूत्र ५४१--चत्तारि करंडगा पण्णता, त जहा-सोवागकरंडए, वेसियाकरंडए, गाहावतिकरंडए, रायकरंडए। एवामेव चत्तारि प्रायरिया पण्णत्ता, त जहा--सोवागकरंडगसमाणे, वेसियाकरंडगसमाणे, गाहावतिकरंडगसमाणे, रायकरंडगसमाणे / करण्डक चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. श्वपाक-करण्डक, 2. वेश्याकरण्डक, 3. गृहपतिकरण्डक, 4 राजकरण्डक / इसी प्रकार प्राचार्य भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. श्वपाक-करण्डक समान 2. वेश्या-करण्डक समान, 3. गृहपति-करण्डकसमान, 4. राज-करण्डकसमान (541) / विवेचन-करण्डक का अर्थ पिटारा या पिटारी है। आज भी यह वांस की शलाकाओं से बनाया जाता है / किन्तु प्राचीन काल में जब आज के समान लोहे और स्टील से निर्मित सन्दुक-पेटी आदि का विकास नहीं हुआ था तब सभी वर्गों के लोग वांस से बने करण्डकों में ही अपना सामान रखते थे / उक्त चारों प्रकार के करण्डकों और उनके समान बताये गये प्राचार्यों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है-- 1. जैसे श्वपाक (चाण्डाल, चर्मकार) आदि के करण्डक में चमड़े को छीलने-काटने आदि के उपकरणों और चमड़े के टुकड़ों आदि के रखे रहने से वह असार या निकृष्ट कोटि का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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