________________ 360] [ स्थानाङ्गसूत्र 2. बिलोपम-बिना चबाये निगला जाने वाला आहार / 3. पाण-मांसोपम-चण्डाल के मांस-सदृश घृणित आहार। 4. पुत्र-मांसोपम-पुत्र के मांस-सदृश निन्द्य और दुःख-भक्ष्य पाहार (511) / विवेचन-उक्त चारों प्रकार के आहार क्रम से शुभ, शुभ-तर, अशुभ और अशुभतर होते हैं / ५१२–मणुस्साणं चउब्विहे पाहारे पण्णत्ते, तजहा-प्रसणे, पाणे, खाइमे, साइमे। मनुष्यों का आहार चार प्रकार का कहा गया है / जैसे१. अशन, 2. पान, 3. खाद्य, 4. स्वाद्य (512) / ५१३---देवाणं चउबिहे प्राहारे पण्णते, त जहा—वण्णमंते, गंधमते, रसमंते, फासमंते / देवों का आहार चार प्रकार का कहा गया है / जैसे-- 1. वर्णवान्-उत्तम वर्णवाला, 2. गन्धवान्–उत्तम सुगन्धवाला, 3. रसवान्–उत्तम मधुर रसवाला, 4. स्पर्शवान्-मृदु और स्निग्ध स्पर्शवाला पाहार (513) / आशीविष-सूत्र ५१४-~चत्तारि जातिप्रासोविसा पण्णता, तं जहा-विच्छुयजातिनासोविसे, मंडुक्कजातिआसीविसे, उरगजातिमासीविसे, मणुस्सजातिप्रासीविसे / विच्छुयजातिप्रासीविसस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ? पभू णं विच्छुयजातिप्रासीविसे अद्धभरहपमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिणयं विसट्टमाणि करित्तए / विसए से विसटुताए, णो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा करिस्संति वा / मंडुक्कजातिप्रासीविसस्स (णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते) ? पभू णं मंडुक्कजातिप्रासीविसे 'भरहप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं विसपरिणयं विसट्टमाणि' (करित्तए / विसए से विसटुताए, णो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा) करिस्संति वा। उरगजाति (पासीविसस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते) ? पभू णं उरगजातिप्रासीविसे जंबुद्दीवपमाणमेत्तं बोंदि विसेणं (विसपरिणयं विसट्टमाणि करित्तए / विसए से विसटुताए, णो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा) करिस्संति वा। मणुस्सजाति (पासीविस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते) ? पभू णं मणुस्सजातियासीविसे समयखेत्तपमाणमत्तं बोंदि विसेणं विसपरिणतं विसट्टमाणि करेत्तए / विसए से विसट्टताए, णो चेव णं (संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा) करिस्संति वा / जाति (जन्म) से आशीविष जीव चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. जाति-पाशीविष वृश्चिक, 2. जाति आशीविष मेंढक / 3. जाति-आशीविष सर्प, 4. जाति-पाशीविष मनुष्य (514) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org