________________ 374] [स्थानाङ्गसूत्र 4. न कुलसम्पन्न, न बलसम्पन्न-कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न बलसम्पन्न ही होता है (474) / ४७५–चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा—कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे णाममेगे जो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूवसंपण्णे / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा--कुलसंपण्णे णाममेगे णो रूवसंपण्णे, रूवसंपण्णे गाममेगें णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि रूवसंप्पणेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो रूव. संपण्णे। पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कुलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न-कोई घोड़ा कुलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. रूपसम्पन्न, न कुलसम्पन्न-कोई घोड़ा रूपसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। 3. कुलसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी-कोई घोड़ा कुलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। 4. न कुलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न-कोई घोड़ा न कुलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. कुलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न---कोई पुरुष कुलसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता / 2. रूपसम्पन्न, न कुलसम्पन्न-कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। 3. कुलसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी-कोई पुरुष कुलसम्पन्न भी होता है और रूपसम्पन्न भी होता है। 4. न कुलसम्पन्न, न रूपसम्पन्न-कोई पुरुष न कुलसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न ही होता है (475) / 476-- चत्तारि पकथगा पण्णत्ता, त जहा-कुलसंपण्णे णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेमे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो कुलसंपण्णे णो जयसंपण्णे। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा–कुलसंपण्णे णाममेगे जो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो कुलसंपण्णे, एगे कुलसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे जो कुल संपणे णो जयसंपण्णे / पुन: घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. कुलसम्पन्न, न जयसम्पन्न--कोई घोड़ा कुलसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता। 2. जयसम्पन्न, न कुलसम्पन्न-कोई घोड़ा जयसम्पन्न होता है, किन्तु कुलसम्पन्न नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org