________________ 372] [ स्थानाङ्गसूत्र [रूवसंपण्णे गाममेगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि रूवसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो रूवसंपण्णे] / पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये है / जैसे१. जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न- कोई घोड़ा जातिसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. रूपसम्पन्न, न जातिसम्पन्न-कोई घोड़ा रूपसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी-कोई घोड़ा जातिसम्पन्न भी होता है और रूप सम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न—कोई घोड़ा न जातिसम्पन्न ही होता है और न रूप सम्पन्न ही होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे--- 1. जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न--कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. रूपसम्पन्न, न जातिसम्पन्न-कोई पुरुष रूपसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न __ नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी और रूपसम्पन्न भी--कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और रूप सम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न--कोई पुरुष न जातिसम्पन्न ही होता है और न रूप सम्पन्न ही होता है (472) / ४७३-चत्तारि [प ?] कंथगा पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे गाममेगे णो जयसंपण्णे 4 / [जयसंपण्णे णाममेगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपणेवि जयसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो अयसंपण्णे]। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे 4 / [णाममेगे णो जयसंपण्णे, जयसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि जयसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो जयसंपण्णे।] पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे--- 1. जातिसम्पन्न, न जयसम्पन्न--कोई घोड़ा जातिसम्पन्न होता है, किन्तु जयसम्पन्न नहीं होता / (युद्ध में विजय नहीं पाता।) 2. जयसम्पन्न, न जातिसम्पन्न--कोई घोड़ा जयसम्पन्न तो होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी, जयसम्पन्न भी--कोई घोड़ा जातिसम्पन्न भी होता है और जयसम्पन्न भी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org