________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश] [ 366 आकोर्ण-खलुक-सूत्र __ ४६८–चत्तारि पकंथगा पणत्ता, तं जहा-पाइण्णे णाममेगे प्राइण्णे, प्राइण्णे णाममेगे खलुके, खलुके णाममेगे प्राइण्णे, खलुके णाममेगे खलुके / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-आइण्णे णाममेगे पाइण्णे चउभंगो [पाइण्णे णाममेगे खलु के, खलुके णाममेगे आइण्णे, खलु के गाममेगे खलुके] / प्रकन्थक-घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. पाकीर्ण और प्राकीर्ण-कोई घोड़ा पहले भी आकीर्ण (वेग वाला) होता है और पीछे भी पाकीर्ण रहता है। 2. पाकीर्ण और खलुक-कोई घोड़ा पहले पाकीर्ण होता है, किन्तु बाद में खलुक (मन्दगति और अड़ियल) होता जाता है। 3. खलुक और प्राकीर्ण --कोई घोड़ा पहले खलुक होता है, किन्तु बाद में आकीर्ण हो जाता है। 4. खलुक और खलुक–कोई घोड़ा पहले भी खलुक होता है और पीछे भी खलुक ही रहता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. प्राकीर्ण और प्राकीर्ण-कोई पुरुष पहले भी प्राकीर्ण-तीव्रबुद्धि होता है और पीछे भी ___ तीव्रबुद्धि ही रहता है। 2. पाकीर्ण और खलुक–कोई पुरुष पहले तो तीव्रवुद्धि होता है, किन्तु पीछे मन्दबुद्धि हो जाता है। 3. खलुक और प्राकीर्ण-कोई पुरुष पहले तो मन्दबुद्धि होता है, किन्तु पीछे तीव्रबुद्धि हो जाता है। 4. खलुक ओर खलुककोई पुरुष पहले भी मन्दबुद्धि होता है और पीछे भी मन्दबुद्धि ही रहता है (468) / ४६६—चत्तारि पकंथगा पण्णत्ता, तं जहा-प्राइण्णे णाममेगे प्राइण्णताए वहति, आइण्णे णाममेगे खलु कताए वहति / [खलुके णाममेगे प्राइण्णताए वहति, खलुके गाममेगे खलुकताए वहति] 4 / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-प्राइण्णे णाममेगे प्राइण्णताए वहति चउभंगो [प्राइण्णे णाममेगें खलुकताए वहति, खलुके णाममेगे ग्राइण्णताए वहति, खलुके गाममेगे खलुकताए वहति] / पुनः प्रकन्थक-घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. पाकीर्ण और प्राकीर्णविहारी कोई घोड़ा कोण होता है और प्राकीर्णविहारी भी होता है, अर्थात् आरोही पुरुष को उत्तम रीति से ले जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org