________________ [ स्थानाङ्गसूत्र पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. परिज्ञातकर्मा, न परिज्ञातसंज्ञ-कोई पुरुष कृषि आदि कर्मों का परित्यागी-सावद्य कर्म से विरत होता है, किन्तु आहारादि संज्ञानों का परित्यागी (अनासक्त) नहीं होता। 2. परिज्ञातसंज्ञ, न परिज्ञातकर्मा-कोई पुरुष आहारादि संज्ञानों का परित्यागी होता है, किन्तु कृषि आदि कमां का परित्यागी नहीं होता। 3. परिज्ञातकर्मा भी, परिज्ञातसंज्ञ भी-कोई पुरुष कृषि आदि कर्मों का भी परित्यागी होता है और आहारादि संज्ञाओं का भी परित्यागी होता है। 4. न परिज्ञातकर्मा, न परिज्ञातसंज्ञ-कोई पुरुष न कृषि प्रादि कर्मों का ही परित्यागी होता है और न आहारादि संज्ञाओं का ही परित्यागी होता है (463) / ४६४-चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–परिणातकम्मे णाममेगे णों परिण्णातगिहावासे, परिण्णातगिहावासे णाममेगे णो परिण्णातकम्मे,। [एगे परिणातकम्भेवि परिणातगिहाबासेवि, एगे णो परिणातकम्मे को परिण्णातगिहावासे] 4 / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. परिज्ञातकर्मा, न परिज्ञातगृहावास-कोई पुरुष परिज्ञातकर्मा (सावद्यकर्म का त्यागी) तो होता है, किन्तु गृहावास का परित्यागी नहीं होता। 2. परिज्ञातगृहावास, न परिज्ञातकर्मा-कोई पुरुष गृहावास का परित्यागी तो होता है, किन्तु परिज्ञातकर्मा नहीं होता। 3. परिज्ञातकर्मा भी, परिज्ञातगृहावास भी-कोई पुरुष परिज्ञातकर्मा भी होता है और परि____ ज्ञातगृहावास भी होता है। 4. न परिज्ञातकर्मा, न परिज्ञातगृहावास—कोई पुरुष न तो परिज्ञातकर्मा ही होता है और न परिज्ञातगृहावास ही होता है (464) / ४६५-चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा–परिणातसग्णे गाममेगे णो परिणातगिहावासे, परिणातगिहावासे णाममेगे। [णों परिणातसण्णे, एगे परिण्णातसणेवि परिणातगिहावासेवि, एगे णो परिण्णातसपणे णो परिणातगिहावासे ] 4 // पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. परिज्ञातसंज्ञ, न परिज्ञातगृहावास-कोई पुरुप आहारादि संज्ञाओं का परित्यागी तो होता है. किन्तु गृहावास का परित्यागी नहीं होता। 2. परिज्ञातगृहावास, न परिज्ञातसंज्ञ-कोई पुरुष परिज्ञातगृहावास तो होता है, किन्तु परिज्ञातसंज्ञ नहीं होता। 3. परिज्ञातसंज्ञ भी, परिज्ञातगृहावास भी-कोई पुरुष परिज्ञातसंज्ञ भी होता है और परिज्ञातगृहावास भी होता है। 4. न परिज्ञातसंज्ञ, न परिज्ञातगृहावास—कोई पुरुष न परिज्ञातसंज्ञ ही होता है और न परिज्ञातगृहावास ही होता है (465) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org