________________ चतुर्थ स्थान-तृतीय उद्देश ] पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न-कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु रूपसम्पन्न नहीं होता। 2. रूपसम्पन्न, न जातिसम्पन्न--कोई पुरुष रूपसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3, जातिसम्पन्न भी, रूपसम्पन्न भी-कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और रूप सम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न रूपसम्पन्न-कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न रूपसम्पन्न हो होता है (362) / 363-- [चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा–जातिसंपण्णे णाममेगे णो सुयसंपण्णे, सुयसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णे वि सुयसंपण्णेवि, एगे जो जातिसंपण्णे णो सुयसंपण्णे।] पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. जातिसम्पन्न, श्रुतसम्पन्न न-कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु श्रुतसम्पन्न नहीं होता। 2. श्रुतसम्पन्न, जातिसम्पन्न न-कोई पुरुष श्रुतसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसन्पन्न भी, श्रुतसम्पन्न भी कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है और श्रु त सम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न श्रुतसम्पन्न- कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न थ तसम्पन्न . ही होता है (363) / ३९४-चत्तारि पूरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जातिसंपण्णे णाममेगे णो सीलसंपण्णे, सोलसंपण्णे णाममेगे णो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपण्णेवि सीलसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो सीलसंपण्णे। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. जातिसम्पन्न, शीलसम्पन्न न-कोई पुरुष जातिसम्पन्न होता है, किन्तु शीलसम्पन्न नहीं होता। 2. शोलसम्पन्न, जातिसम्पन्न न-कोई पुरुष शीलसम्पन्न होता है, किन्तु जातिसम्पन्न नहीं होता। 3. जातिसम्पन्न भी, शोलसम्पन्न भी-कोई पुरुष जातिसम्पन्न भी होता है शीलसम्पन्न भी होता है। 4. न जातिसम्पन्न, न शीलसम्पन्न-कोई पुरुष न जातिसम्पन्न होता है और न शील सम्पन्न ही होता है (364) / ३६५---[चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–जातिसंपण्णे णाममेगे णो चरित्तसंपण्णे, चरित्तसंपण्णे णाम मेगे जो जातिसंपण्णे, एगे जातिसंपणेवि चरित्तसंपण्णेवि, एगे णो जातिसंपण्णे णो चरित्तसंपण्णे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org