________________ चतुर्थ स्थान - तृतीय उद्देश ] [ 326 2. वियोजयिता, न योजयिता-कोई पुरुष दूसरों को अयोग्य कार्यों से वियुक्त तो करता है, किन्तु उत्तम कार्यों में युक्त नहीं करता। 3. योजयिता भी, वियोजयिता भी--कोई पुरुष दूसरों को उत्तम कार्यों में युक्त भी करता है और अनुचित कार्यों से वियुक्त भी करता है / 4. न योजयिता, न वियोजयिता-कोई दूसरों को उत्तम कार्यों में न युक्त ही करता है और न अनुचित कार्यों से वियुक्त ही करता है (376) / युक्त-अयुक्त-सूत्र ३८०-चत्तारि हया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते। एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्ते, जुत्ते णाममेगे अजुत्ते, अजुत्ते णाममेगे जुत्ते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्ते / घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. युक्त और युक्त-कोई घोड़ा जीन-पलान से युक्त होता है और वेग से भी युक्त होता है। 2. युक्त और अयुक्त-कोई घोड़ा जीन-पलान से युक्त तो होता है, किन्तु वेग से युक्त नहीं होता। 3. अयुक्त और युक्त—कोई घोड़ा जीन-पलान से प्रयुक्त होकर भो वेग से युक्त होता है। 4. अयुक्त और अयुक्त-कोई घोड़ा न जीन-पलान से युक्त होता है और न वेग से ही युक्त __ होता है। इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. युक्त और युक्त--कोई पुरुष वस्त्राभरण से युक्त है और उत्साह आदि गुणों से भी 2. युक्त और अयुक्त-कोई पुरुष वस्त्राभरण से तो युक्त है, किन्तु उत्साह आदि गुणों से युक्त नहीं है। 3. अयुक्त और युक्त—कोई पुरुष वस्त्राभरण से अयुक्त है, किन्तु उत्साह आदि गुणों से युक्त है। 4. अयुक्त और प्रयुक्त -कोई पुरुष न वस्त्राभरण से युक्त है और न उत्साह आदि गुणों से युक्त है (380) / ३८१.-.एवं जुत्तपरिणते, जुत्तरूवे, जुत्तसोभे, सवेसि पडिवक्खो पुरिसजाता। चत्तारि हया पण्णत्ता, त जहा-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते गाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते / एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, त जहा-~-जुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, जुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे जुत्तपरिणते, अजुत्ते णाममेगे अजुत्तपरिणते / पुनः घोड़े चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे१. युक्त और युक्त-परिणत-कोई घोड़ा युक्त भी होता है और युक्त-परिणत भी होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org