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________________ 264] [स्थानाङ्गसूत्र .. दूसरा अभिमत यह है कि किसी भी जीव के एकत्र किये गये रक्त में जो कीड़े पैदा हो जाते हैं उन्हें मसलकर कचरा फेंक दिया जाता है और कुछ दूसरी वस्तुएं मिलाकर जो रंग बनाया जाता है, उसे कृमिराग कहते है। किन्तु दिगम्बर शास्त्रों में 'किमिराय' का अर्थ 'किरमिजी रंग' किया गया है / उससे रंगे गये वस्त्र का रंग छूटता नहीं है। उपर्युक्त दि० ग्रन्थों में अप्रत्याख्यानावरण लोभ का उदाहरण चक्रमल (गाड़ी के चाक का मल) जैसे दिया गया है और प्रत्याख्यानावरण लोभ का दृष्टान्त तनु-मल (शरीर का मैल) दिया गया संसार-सूत्र २८५--चउबिहे संसारे पण्णत्त, त जहा–णेरइयसंसारे, जाव (तिरिक्खजोणियसंसारे, मणुस्ससंसारे), देवसंसारे। संसार चार प्रकार का कहा गया है। जैसे१. नैरयिकसंसार, 2. तिर्यग्योनिकसंसार, 3. मनुष्यसंसार और, 4. देवसंसार (285) / २८६--चउबिहे पाउए पण्णत्ते, तजहा–णेरइयाउए, जाव (तिरिक्खजोणियाउए, मणुस्साउए), देवाउए। ६आयुष्य चार प्रकार का कहा गया है। जैसे--- 1. नैरयिक-आयुष्य, 2. तिर्यग्योनिक-आयुष्य, 3. मनुष्य प्रायुष्य, और 4. देव प्रायुष्य / (286) / २८७-चउबिहे भवे पण्णत्त, तं जहा.--रइयभवे, जाव (तिरिक्खजोणियभवे, मणुस्सभवे) देवभवे / . . . भव चार प्रकार का कहा गया है / जैसे---- 1. नैरयिकभव, 2 तिर्यग्योनिकभव, 3 मनुष्यभव, और 4. देवभव (287) / आहार-सूत्र २८८-चउब्धिहे प्राहारे पण्णते, तं जहा--असणे, पाणे, खाइमे, साइमे / आहार चार प्रकार का कहा गया है, जैसे-~१. अशन---अन्न आदि। 2. पान--कांजी, दुग्ध, छाछ आदि / 3. खादिम-फल, मेवा आदि / 4. स्वादिम--ताम्बूल, लवंग, इलायची आदि (288) / 2. किमिराय बक्कतणुमलहलिद्दराएण सरिसमो लोहो / णारय-तिरिय-णरामर गईसुप्पायो कमसो।। (गो. जीवकाण्ड गा० 286) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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