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________________ 272] [ स्थानाङ्गसूत्र एवामेव चत्तारि पुरिसजाया पण्णमा, तं जहा—संकिण्णे णाममेगे भद्दमणे, [संकिण्णे णाममेगे मंदमणे, संकिण्णे णाममग मियमणे] संकिण्णे णाममेग संकिण्णमणे / पुनः हाथी चार प्रकार के कहे गये हैं / जैसे---- 1. संकीर्ण और भद्रमन-कोई हाथी जाति से संकीर्ण (मिले-जुले स्वभाववाला) किन्तु भद्र मनवाला होता है। 2. संकीर्ण और मन्दमन—कोई हाथी जाति से संकीर्ण और मन्द मनवाला होता है / 3 संकीर्ण और मृगमन-कोई हाथी जाति से संकीर्ण और मृगमनवाला होता है। 4. संकीर्ण और संकीर्ण--कोई हाथी जाति से संकीर्ण और संकीर्ण ही मनवाला होता है / इसी प्रकार पुरुष भी चार जाति के कहे गये हैं जैसे१. संकीर्ण और भद्रमन - कोई पुरुष स्वभाव से संकीर्ण, किन्तु भद्रमन वाला होता है। 2. संकीर्ण और मन्दमन - कोई पुरुष स्वभाव से संकीर्ण, और मन्द मनवाला होता है / 3. संकीर्ण और मृगमन-कोई पुरुष स्वभाव से संकीर्ण और मृग मनवाला होता है। 4. संकीर्ण और संकीर्ण-कोई पुरुष स्वभाव से संकीर्ण और संकीर्ण मनवाला होता है / संग्रहणी-गाथा मधुगुलिय-पिंगलखो, अणुपुन्य-सुजाय-दोहणंगूलो। पुरो उदग्गधीरो, सव्वंगसमाधितो भद्दो // 1 // चल-बहल-विसम-चम्मो, थूलसिरो थूलएण पेएण / थूलणह-दंत-वालो, हरिपिंगल-लोयणो मंदो // 2 // तणुगों तणुयग्गीयो, तणुयतों तणुयदंत-णह बालो। भीरू तत्थुग्विग्गो, तासी य भवे मिए णामं // 3 // एतेसि हत्थीणं थोवा थोवं, तु जो अणुहरति हत्थी। रूवेण व सोलेण ब, सो संकिण्णोत्ति णायवो // 4 // भद्दो मज्जइ सरए, मंदो उण मज्जते वसंतमि / मिउ मज्जति हेमंते, संकिण्णो सवकालंमि // 5 // 1. जिसके नेत्र मधु की गोली के समान गोल रक्त-पिगल वर्ण के हों, जो काल-मर्यादा के अनुसार ठीक तरह से उत्पन्न हा हो, जिसकी छ लम्बी हो, जिसका अग्र भाग उन्नत हो, जो धीर हो, जिसके सब अंग प्रमाण और लक्षण से सुव्यवस्थित हों, उसे भद्र जाति का हाथी कहते हैं। 2. जिसका चर्म शिथिल, स्थूल और विषम (रेखानों से युक्त) हो, जिसका शिर और पूछ का मूलभाग स्थूल हो, जिसके नख, दन्त और केश स्थूल हों, जिसके नेत्र सिंह के समान पीत पिंगल वर्ण के हों, वह मन्द जाति का हाथी है। 3. जिसका शरीर, ग्रीवा, चर्म, नख, दन्त और केश पतले हों, जो भीरु, त्रस्त और उद्विग्न स्वभाववाला हो, तथा दूसरों को त्रास देता हो, वह मृग जाति का हाथी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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