________________ 260] [ स्थानाङ्गसूत्र 1. दीन और दीनवृत्ति-कोई पुरुष दीन है और दीनवृत्ति (दीन जैसी आजीविका) वाला होता है। 2. दीन और अदीनवृत्ति-कोई पुरुष दीन होकर भी दीनवृत्तिवाला नहीं होता है। 3. अदीन और दीनवृत्ति--कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीनवृत्तिवाला होता है। 4. अदीन और अदीन वृत्ति--कोई पुरुष न दीन है और न दीनवृत्तिवाला होता है (204) / २०५–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता त जहा-दीणे णाममेगे दोणजाती, दीणे णाममेगे प्रदीणजाती, प्रदीणे णाममेगे दोणजाती, अदीणे णाममेगे अदीणजाती। पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे१. दीन और दीनजाति-कोई पुरुष दीन है और दीन जातिवाला होता है। 2. दीन और अदीनजाति-कोई पुरुष दीन होकर भी दीन जातिवाला नहीं होता है। 3. अदीन और दीनजाति-कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीन जातिवाला होता है। 4. अदीन और अदीनजाति-कोई पुरुष न दीन है और न दीनजातिवाला होता है' (205) / २०६–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दीणे णाममेगे दोणभासी, दोणे गाममेगे प्रदीणभासी, प्रदीणे णाममेगे दोणभासी, अदीणे णाममेगे अदीणभासी। पुन: पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे 1. दीन और दीनभाषी-कोई पुरुष दीन है और दीनभाषा बोलनेवाला होता है। 2. दीन और अदीनभाषी-कोई पुरुष दीन होकर भी दीनभाषा नहीं बोलने वाला होता है। 3. अदीन और दीनभाषी-कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीनभाषा बोलनेवाला होता है। 4. अदीन और अदीनभाषी-कोई पुरुष न दीन है और न दीनभाषा बोलने वाला होता है। (206) / २०७–चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-दोणे णाममेगे दीणोभासी, दोणे णाममेगे प्रदीणोभासी, प्रदीणे णाममेगे दोणोभासी, प्रदीणे णाममेगे प्रदीणोभासी] / पुनः पुरुष चार प्रकार के कहे गये हैं, जैसे-- 1. दीन और दीनावभासी-कोई पुरुष दीन है और दीन के समान जान पड़ता है / 2. दीन और अदीनावभासी-कोई पुरुष दीन होकर भी दीन नहीं जान पड़ता है / 3. अदीन और दीनावभासी---कोई पुरुष दीन नहीं होकर भी दीन जान पड़ता है / 4. अदीन और अदीनावभासी-कोई पुरुष न दोन है और न दीन जान पड़ता है (207) / २०८-चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-दोणे णाममेगे दीणसेवी, दीणे काममेगे प्रदीणसेवी, प्रदीणे णाममेगे दोणसेवी, प्रदीणे णाममेगे प्रदोणसेवी। 1. संस्कृत टीकाकार ने अथवा लिखकर 'दीण जाती' पद का दूसरा संस्कृत रूप 'दीनयाची' लिखा है जिसके अनुसार दीनतापूर्वक याचना करने वाला पुरुष होता है। तीसरा संस्कृतरूप 'दीनयायी' लिखा है, जिसका अर्थ दीनता को प्राप्त होने वाला पूरुष होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org