________________ 250 ] [ स्थानाङ्गसूत्र उत्तर दिशा के इन्द्र- वेणुदालि, अग्निमाणव, विशिष्ट, जलप्रभ, अमितवाहन, प्रभंजन, और महाघोष के लोकपालों के चार-चार अग्रमहिषियां कही गई हैं। जैसे-- 1. सुनन्दा, 2. सुप्रभा, 3. सुजाता, 4. सुमना (158) / १५६-कालस्स णं पिसाइंदस्स पिसायरणो चत्तारि अग्गमहिसीनो पण्णत्तानो, तं जहा कमला, कमलप्पभा, उप्पला, सुदंसणा। पिशाचराज पिशाचेन्द्र काल की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं / जैसे१. कमला, 2. कमलप्रभा, 3. उत्पला, 4. सुदर्शना (156) / १६०–एवं महाकालस्सवि / इसी प्रकार महाकाल की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (160) / १६१–सुरुवस्स णं भूतिदस्स भूतरण्णो चत्तारि अगमहिसीनो पण्णत्तानो, तं जहारूववती, बहरूवा, सुरूवा, सुभगा। भूतराज भूतेन्द्र सुरूप की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं। जैसे-~१. रूपवती, 2. बहुरूपा, 3. सुरूपा, 4. सुभगा (161) / १६२–एवं पडिरूवस्सवि। इसी प्रकार प्रतिरूप की भी चार अग्नमहिषियां कही गई हैं (162) / १६३-पुण्णभद्दस्स णं क्खिदस्स जक्खरण्णो चत्तारि अगमहिसीनो पण्णत्तानो, तं जहा पुण्णा, बहुपुण्णिता, उत्तमा, तारगा। यक्षराज यक्षेन्द्र पूर्णभद्र की चार अग्रमहिषियों कही गई हैं / जैसे--- 1. पूर्णा, 2. बहुपूणिका, 3. उत्तमा, 4. तारका (163) / १६४–एवं माणिभद्दस्सवि / इसी प्रकार माणिभद्र की भी चार अग्रमहिषियां कही गई हैं (164) / १६५-भीमस्स णं रसिदस्स रक्खसरण्णो चत्तारि अग्गमहिसीनो पण्णत्तानो, तं जहा–पउमा, वसुमती, कणगा, रतणप्पभा। राक्षसराज राक्षसेन्द्र भीम की चार अग्रमहिषियां कही गई हैं / जैसे१. पद्मा, 2. वसुमती, 3. कनका, 4. रत्नप्रभा (165) / १६६-एवं महाभीमसस्सवि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org