________________ 242] [स्थानाङ्गसूत्र 3. काल-संसार-उत्सर्पिणी आदि काल में होने वाला जीव-पुद्गल का परिभ्रमण / 4. भाव-संसार-औदयिक आदि भावों में जीवों का और वर्ण, रसादि में पुद्गलों का परिवर्तन (130) / दृष्टिवाद-सूत्र १३१-चउविहे दिटुिवाए पण्णत्ते, तं जहा-परिकम्म, सुत्ताई, पुव्वगए, अणुजोगे। दृष्टिवाद (द्वादशांगी श्रुत का बारहवां अंग) चार प्रकार का कहा गया है, जैसे१. परिकर्म—इसके पढ़ने से सूत्र आदि के ग्रहण की योग्यता प्राप्त होती है / 2. सूत्र-इसके पढ़ने से द्रव्य-पर्याय-विषयक ज्ञान प्राप्त होता है / 3. पूर्वगत-इसके अन्तर्गत चौदह पूर्वो का समावेश है। 4. अनुयोग-इसमें तीर्थंकरादि शलाका पुरुषों के चरित्र वणित हैं। विवेचन-शास्त्रों में अन्यत्र दष्टिवाद के पांच भेद बताये गये हैं। 1. परिकर्म, 2. सूत्र, 3. प्रथमानुयोग, 4. पूर्वगत और 5. चूलिका / प्रकृत सूत्र में चतुर्थस्थान के अनुरोध से प्रारम्भ के चार भेद कहे गये हैं। परिकर्म में गणित सम्बन्धी करण-सूत्रों का वर्णन है। तथा इसके पांच भेद कहे गये हैं--१. चन्द्रप्रज्ञप्ति, 2. सूर्यप्रज्ञप्ति, 3. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, 4. द्वीप-सागरप्रज्ञप्ति और 5. व्याख्याप्रज्ञप्ति / इनमें चन्द्र-सूर्यादिसम्बन्धी विमान, आयु, परिवार, गमन आदि का वर्णन किया गया है। दृष्टिवाद के दूसरे भेद सूत्र में 363 मिथ्यामतों का पूर्वपक्ष बता कर उनका निराकरण किया गया है। दृष्टिवाद के तीसरे भेद प्रथमानुयोग में 63 शालाका पुरुषों के चरित्रों का वर्णन किया गया है। दृष्टिवाद के चौथे भेद में चौदह पूर्वोका वर्णन है। उनके नाम और वर्ण्य विषय इस प्रकार हैं 1. उत्पादपूर्व-इसमें प्रत्येक द्रव्य के उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य और उनके संयोगी धर्मों का वर्णन है। इसको पद-संख्या एक करोड़ है। 2. प्राग्रायणीयपूर्व–इसमें द्वादशाङ्ग में प्रधानभूत सात सौ सुनय, दुर्नय, पंचास्तिकाय, सप्त तत्त्व आदि का वर्णन है। इसकी पद-संख्या छयानवे लाख है। 3. वीर्यानुवाद पूर्व-इससे आत्मवीर्य, परवीर्य, कालवीर्य, तपोवीर्य, द्रव्यवीर्य, गुणवीर्य आदि अनेक प्रकार के वीर्यों का वर्णन है। इसकी पदसंख्या सत्तर लाख है। 4. अस्ति-नास्तिप्रवाद पूर्व-इसमें प्रत्येक द्रव्य के धर्मों का स्यादस्ति, स्यान्नास्ति, आदि सप्त भंगों का प्रमाण और नय के आश्रित वर्णन है। इसकी पद-संख्या साठ लाख है। 5. ज्ञान-प्रवाद पूर्व-इसमें ज्ञान के भेद-प्रभेदों का स्वरूप, संख्या, विषय और फलादि की अपेक्षा से विस्तृत वर्णन है। इसकी पद-संख्या एक कम एक करोड़ (6666666) है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org