________________ 162] [ स्थानाङ्गसूत्र भगवान ने तीन प्रकार का धर्म कहा है-सु-अधीत (समीचीन रूप से अध्ययन किया गया)। सु-ध्यात (समीचीन रूप से चिन्तन किया गया) और सु-तपस्थित (सु-पाचरित)। जब धर्म सु-अधीत होता है, तब वह सु-ध्यात होता है / जब वह सु-ध्यात होता है, तब वह सु-तपस्थित होता है / सु-अधीत, सु-ध्यात और सु-तपस्थित धर्म को भगवान ने स्वाख्यात धर्म कहा है (507) / ज्ञ-अज्ञ-सूत्र ५०८—तिविधा वावत्ती पण्णत्ता, तजहा---जाणू, अजाण, वितिगिच्छा। व्यावृत्ति (पापरूप कार्यों से निवृत्ति) तीन प्रकार की कही गई है -ज्ञान-पूर्वक, अज्ञानपूर्वक और विचिकित्सा (संशयादि)-पूर्वक (508) / ५०६-[तिविधा अज्झोववज्जणा पण्णत्ता, त जहा--जाणू, अजाणू, वितिगिच्छा। __[अध्युपपादन (इन्द्रिय-विषयानुसंग) तीन प्रकार का कहा गया है-ज्ञानपूर्वक, अज्ञान-पूर्वक और विचिकित्सा-पूर्वक (506) / ५१०–तिविधा परियावज्जणा पण्णत्ता, त जहा-जाणू, अजाणू, वितिगिच्छा] / पर्यापादन (विषय-सेवन) तीन प्रकार का कहा गया है--ज्ञानपूर्वक, अज्ञान-पूर्वक और विचिकित्सा-पूर्वक (510) / ] अन्त-सूत्र ५११-तिविधे अंते पण्णत्ते, त जहा-लोगंत, वेयंत, समयंत / अंत (रहस्य-निर्णय) तीन प्रकार का कहा गया है१. लोकान्त-निर्णय--लौकिक शास्त्रों के रहस्य का निर्णय / 2. वेदान्त-निर्णय-वैदिक शास्त्रों के रहस्य का निर्णय / 3. समयान्त-निर्णय-जैनसिद्धान्तों के रहस्य का निर्णय (512) / जिन-सूत्र ५१२--तम्रो जिणा पण्णत्ता, त जहा-प्रोहिणाणजिणे, मणपज्जवणाणजिणे, केवलणाणजिणे। ५१३-तनो केवली पण्णत्ता, त जहा--प्रोहिणाणकेवली, मणपज्जवणाणकेवली, केवलणाणकेवली। ५१४-तओ परहा पण्णत्ता, तजहा–ोहिणाणपरहा, मणपज्जवणाणसरहा, केवलणाणसरहा / जिन तीन प्रकार के कहे गये हैं-अवधिज्ञानी जिन, मनःपर्यवज्ञानी जिन और केवलज्ञानी जिन (512) / केवली तीन प्रकार के कहे गये हैं-अवधिज्ञान केवली, मनः पर्यवज्ञान केवलो और केवलज्ञान केवली (513) / अर्हन्त तीन प्रकार के कहे गये हैं- अवधिज्ञानी अर्हन्त, मनःपर्यवज्ञानी अर्हन्त और केवलज्ञानी अर्हन्त (514) / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org