________________ 160] [स्थानाङ्गसूत्र अभिसमागम (वस्तु-स्वरूप का यथार्थज्ञान) तीन प्रकार का कहा गया है-ऊर्ध्व-अभिसमागम, तिर्यक्-अभिसमागम और अध:-अभिसमागम / जब तथारूप श्रमरण-माहनको अतिशय-युक्त ज्ञान-दर्शन उत्पन्न होता है, तब वह सर्वप्रथम ऊर्ध्वलोक को जानता है। तत्पश्चात् तिर्यक्लोक को जानता है और उसके पश्चात् अधोलोक को जानता है। हे आयुष्मन् श्रमण ! अधोलोक सबसे अधिक दुरभिगम कहा गया है (500) / ऋद्धि-सूत्र ५०१---तिविधा इड्डी पप्णत्ता, त जहा-देविड्डी, राइड्डी, गणिड्ढी / ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है-देव-ऋद्धि, राज्य-ऋद्धि और गणि(प्राचार्य)-ऋद्धि / ५०२–देविड्ढी तिविहा पण्णत्ता, त जहा-विमाणिड्ढी, विगुध्वणिड्ढी, परियारणिड्ढी / अहवा-देविड्ढी तिविहा पण्णत्ता, त जहा–सचित्ता, अचित्ता, मीसिता। देव-ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है-विमान-ऋद्धि, वैक्रिय-ऋद्धि और परिचारण-ऋद्धि / अथवा देव-ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है---सचित्त-ऋद्धि, (देवी-देवादिका परिवार) अचित्त-ऋद्धि-वस्त्र-ग्राभूशषादि और मिश्र-ऋद्धि-वस्त्राभरणभूषित देवी आदि (502) / ५०३–राइड्ढी तिविधा पण्णता, तजहा-रणो अतियाणिड्ढी, रणो णिज्जाणिड्ढी, रण्णो बल-वाहण-कोस-कोट्ठागारिड्ढी / अहवा-राइड्ढी तिविहा पण्णत्ता, त जहा--सचित्ता, अचित्ता, मीसिता / राज्य-ऋद्धि तीन प्रकार की कही गई है.-- 1. अतियान-ऋद्धि-नगरप्रवेश के समय की जाने वाली तोरण-द्वारादि रूप शोभा। 2. निर्याण-ऋद्धि--नगर से बाहर निकलने का ठाठ / 3. कोष-कोष्ठागार-ऋद्धि-खजाने और धान्य-भाण्डारादि रूप / अथवा-राज्य-ऋद्धि तीन प्रकार को कही गई है१. सचित्त-ऋद्धि--रानी, सेवक, परिवारादि / 2. अचित्त-ऋद्धि-वस्त्र, आभूषण, अस्त्र-शस्त्रादि / 3. मिश्र-ऋद्धि--अस्त्र-शस्त्र धारक सेना आदि (503) / विवेचन--जब कोई राजा युद्धादि को जीतकर नगर में प्रवेश करता है, या विशिष्ट अतिथि जब नगर में आते हैं, उस समय की जाने वाली नगर-शोभा या सजावट अतियान ऋद्धि कही जाती है। जब राजा युद्ध के लिये या किसी मांगलिक कार्य के लिए नगर से बाहर ठाठ-बाट के साथ निकलता है उस समय की जाने वाली शोभा-सजावट निर्याण-ऋद्धि कहलाती है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org