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________________ पाटलिपुत्र की वाचना के सम्बन्ध में दिगम्बर प्राचीन साहित्य में कहीं उल्लेख नहीं है। यद्यपि दोनों ही परम्पराएं भद्रबाहु को अपना आराध्य मानती हैं। प्राचार्य भद्रबाह के शासनकाल में दो विभिन्न दिशाओं में बढ़ती हुई श्वेताम्बर और दिगम्बर परम्परा के प्राचार्यों की नामशृङ्खला एक केन्द्र पर या पहुंची थी। अब पुनः वह शृङ्खला विशृङ्खलित हो गयी थी। द्वितीय वाचना आगमसंकलन का द्वितीय प्रयास वीर-निर्वाण 300 से 330 के बीच हुआ / सम्राट् खारवेल उड़ीसा प्रान्त के महाप्रतापी शासक थे। उन का अपर नाम "महामेघवाहन' था। इन्होंने अपने समय में एक बहद जैन सम्मेलन का आयोजन किया था, जिसमें अनेक जैन भिक्षु, प्राचार्य, विद्वान्, तथा विशिष्ट उपासक सम्मिलित हए थे। सम्राट खारवेल को उनके कार्यों को प्रशस्ति के रूप में "धम्मराज" "भिक्ख राज' 'खेमराज" जैसे विशिष्ट शब्दों से सम्बोधित किया गया है। हाथी गुफा (उड़ीसा) के शिलालेख में इस सम्बन्ध में विस्तार से वर्णन है / हिमवन्त स्थविरावली के अनुसार महामेघवाहन, भिक्षुराज खारवेल सम्राट ने कुमारी पर्वत पर एक श्रमण सम्मेलन का आयोजन किया था / प्रस्तुत सम्मेलन में महागिरि-परम्परा के बलिस्सह, बौद्धिलिङ. देवाचार्य, धर्मसेनाचार्य, नक्षत्राचार्य, प्रभृति दो सौ जिनकल्पतुल्य उत्कृष्ट साधना करने वाले श्रमण तथा आर्य सुस्थित, आर्य सूप्रतिबद्ध, उमास्वाति, श्यामाचार्य, प्रभति तीन सौ स्थविरकल्पी श्रमण थे। आर्या पोइणी प्रभति 300 साध्वियाँ, भिखुराय, चूर्णक, सेलक, प्रभृति 700 श्रमणोपासक और पूर्णमित्रा प्रभृति 700 उपासिकाएँ विद्यमान थीं। बलिस्सह, उमास्वाति, श्यामाचार्य प्रभति स्थविर श्रमणों ने सम्राद खारवेल की प्रार्थना को सम्मान देकर सुधर्मा-रचित द्वादशांगी का संकलन किया / उसे भोजपत्र, ताडपत्र, और वल्कल पर लिपिबद्ध कराकर प्रागम वाचना के ऐतिहासिक-पृष्ठों में एक नवीन अध्याय जोड़ा / प्रस्तुत-वाचना भुवनेश्वर के निकट कुमारगिरि जो वर्तमान में खण्ड गिरि, उदयगिरि पर्वत के नाम से विश्रत है, वहां हुई थी, जहाँ पर अनेक जैन गुफाएं हैं। जो कलिंग नरेश खारवेल महामेघवाहन के धार्मिक-जीवन की परिचायिका है। इस सम्मेलन में आर्य सुस्थित और सुप्रतिबुद्ध दोनों सहोदर भी उपस्थित थे। कलिंगाधिप भिक्षुराज ने इन दोनों का विशेष सम्मान किया था / 54 हिमवन्त थेरावली के अतिरिक्त अन्य किसी जैन ग्रन्थ में इस सम्बन्ध में उल्लेख नहीं है। खण्डगिरि और उदयगिरि में इस सम्बन्ध में जो विस्तृत लेख उत्कीर्ण है, उससे स्पष्ट परिज्ञात होता है कि उन्होंने प्रागम-वाचना के लिये सम्मेलन किया था। ततीय वाचना आगमों को संकलित करने का ततीय प्रयास वीर-निर्वाण 827 से 840 के मध्य हमा। बीर-निर्वाण की नवमी शताब्दी में पूनः द्वादश वर्षीय दुष्काल से श्रत-विनाश का भीषण प्राघात जैन शासन को लगा। श्रमण-जीवन की मर्यादा के अनुकूल पाहार की प्राप्ति अत्यन्त कठिन हो गयी / बहुत-से श्रुतसम्पन्न श्रमण काल 58. सुट्ठियसुपडिबुद्ध, अज्जे दुन्ने वि ते नमसामि / भिक्खुराय कलिंगाहिवेण सम्माणिए जिठे / / -हिमवंत स्थविरावली, गा. 10 55. क-जर्नल आफ दी विहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसायटी, भाग 13, पृ. 336 ख–जन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग 1, पृ. 82 ग--जैनधर्म के प्रभावक प्राचार्य, पृ. १०-११-साध्वी संघमित्रा [23] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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