________________ 170 ] [ स्थानाङ्गसूत्र उत्तर----आयुष्मन् ! व्यवदान का फल प्रक्रिया अर्थात् मन-वचन-काय की हलन-चलन रूप क्रिया या प्रवृत्ति का पूर्ण निरोध है (418) / प्रश्न-भदन्त ! प्रक्रिया का क्या फल है ? उत्तर-प्रायुष्मन् ! अक्रिया का फल निर्वाण है / प्रश्न-भदन्त ! निर्वाण का क्या फल है ? उत्तर-प्रायुष्मन् श्रमण ! निर्वाण का फल सिद्धगति को प्राप्त कर संसार-परिभ्रमण (जन्म-मरण) का अन्त करना है। / तृतीय उद्देश समाप्त / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org