________________ 140] [ स्थानाङ्गसूत्र २६४----[तो पुरिसजाया पण्णता, तं जहा - रूवं अपासित्ता णामेगे सुमणे भवति, रूवं अपासित्ता णागे दुम्मणे भवति, रूवं अपासित्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / 265- तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवं ण पासामीतेगे सुमणे भवति, रूवं ण पासामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं ण पासामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २९६-तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा–रूवं ण पासिस्सामोलेगे सुमण भवति, रूवं ण पासिस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, रूवं ण पासिस्सामीतेगे जोसुमणेणोदुम्मणे भवति / पुरुष तीन प्रकार के होते हैं--कोई पुरुष 'रूप नहीं देखकर' सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'रूप नहीं देखकर' दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'रूप न देखकर' न सुमनस्क होता है और न दुमनस्क होता है (294) / पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'रूप नहीं देखता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है। कोई पुरुष 'रूप नहीं देखता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष 'रूप नहीं देखता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (265) / पुन: पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'रूप नहीं देखू गा' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष रूप नहीं देखू गा' इसलिए दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष 'रूप नहीं देखू गा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (266) / ] २६७--[तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं अग्घाइत्ता णामेगे सुमणे भवति, गंध अग्घाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्धाइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २६८-तत्रो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा-गंधं प्रग्घामीतेगे सुमणे भवति, गंधं अग्धामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्घामोतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २६६-तओ पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- गंधं अग्धाइस्सामीतेगे सुमणे भवति, गंधं अग्याइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं अग्याइस्सामीतेगे जोसुमणेणोदुम्मणे भवति / [पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं-कोई पुरुष 'गन्ध सूचकर के' सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'गन्ध सूघ करके' दुर्मनस्क होता है / तथा कोई पुरुष 'गन्ध सूचकर' न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (267) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं—कोई पुरुष 'गन्ध सूघता हूं' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'गन्ध सूघता हूं' इसलिए दुर्मनस्क होता है। तथा कोई पुरुष 'गन्ध सूघता हूं' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (268) / पुनः पुरुष तीन प्रकार के कहे गये हैं--कोई पुरुष 'गन्ध सूङ्गा ' इसलिए सुमनस्क होता है / कोई पुरुष 'गन्ध सूघूगा' इसलिए दुर्मनस्क होता है / तथा पुरुष 'गन्ध सूधूगा' इसलिए न सुमनस्क होता है और न दुर्मनस्क होता है (266)] ३००-[तो पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा--गंधं अणघाइत्ता जामगे सुमणे भवति, गंधं अणग्घाइत्ता णामेगे दुम्मणे भवति, गंधं प्रणग्याइत्ता णामेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / ३०१--तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा- गंध ण अग्धामीतेगे सुमणे भवति, गंधं ण अग्धामीतेगे दुम्मणे भवति, गंधं ण अग्धामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / २०२–तो पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा—गंधं ण अग्घाइस्सामीतेगे सुमणे भवति, गंधं ण अग्घाइस्सामीतेगे दुम्मणे भवति, गंध ण अग्घाइस्सामीतेगे जोसुमणे-णोदुम्मणे भवति / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org