________________ श्रमणियाँ आगमों के अध्ययन की ओर इतने उत्सुक नहीं थे / जो विशिष्ट मेधावी व जिज्ञासु श्रमण-श्रमणियाँ थीं, जिनके अन्तर्मन में ज्ञान और विज्ञान के प्रति रस था, जो आगमसाहित्य के तलछट तक पहुंचना चाहते थे, वे ही आगमों का गहराई से अध्ययन, चिन्तन, मनन और अनुशीलन करते थे। यही कारण है कि प्रागमसाहित्य में श्रमण और श्रमणियों के अध्ययन के तीन स्तर मिलते हैं। कितने ही श्रमण सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन करते थे / 10 कितने ही पूर्वो का अध्ययन करते थे।'' और कितने ही द्वादश अंगों को पढ़ते थे।१२ इस प्रकार अध्ययन के क्रम में अन्तर था। शेष श्रमण-श्रमणियाँ आध्यात्मिक साधना में ही अपने आप को लगाये रखते थे / जैन श्रमणों के लिये जैनाचार का पालन करना सर्वस्व था। जब कि ब्राह्मणों के लिये वेदाध्ययन करना सर्वस्व था। वेदों का अध्ययन गहस्थ जीवन के लिए भी उपयोगी था। जब कि जैन आगमों का अध्ययन केबल जैन श्रमणों के लिये उपयोगी था, और वह भी पूर्ण रूप से साधना के लिए नहीं! साधना की दृष्टि से चार अनुयोगों में चरण-करणानुयोग ही विशेष रूप से आवश्यक था। शेष तीन अनुयोग उतने आवश्यक नहीं थे। इसलिये साधना करने वाले श्रमण-श्रमणियों की उधर उपेक्षा होना स्वाभाविक था। द्रव्यानुयोग आदि कठिन भी थे / मेधावी सन्त-सतियाँ ही उनका गहराई से अध्ययन करती थीं, शेष नहीं। - हम पूर्व ही बता चुके हैं कि तीथंकर भगवान् अर्थ की प्ररूपणा करते हैं, / सूत्र रूप में संकलन गणधर करते हैं। एतदर्थ ही प्रागमों में यत्र-तत्र 'तस्स णं अयमठे पण्णत्त' वाक्य का प्रयोग हुया है। जिस तीर्थकर के जितने गणधर होते हैं, वे सभी एक ही अर्थ को आधार बनाकर सूत्र की रचना करते हैं। कल्पसूत्र की स्थविरावली में श्रमण भगवान महावीर के नौ गण और ग्यारह गणधर बताये हैं। 3 उपाध्याय विनयविजय जी ने गण का अर्थ एक वाचना ग्रहण करने वाला 'श्रमणासमुदाय' किया है। 14 और गण का दूसरा अर्थ स्वयं का शिष्य समुदाय भी है। कलिकाल सर्वज्ञ प्राचार्य हेमचन्द्र ने 5 यह स्पष्ट किया है कि प्रत्येक गण की सूत्रवाचना पृथकपृथक थी। भगवान महावीर के ग्यारह गणधर और नौ गण थे / नौ गणधर श्रमण भगवान महावीर के सामने ही मोक्ष पधार चुके थे और भगवान् महावीर के परिनिर्वाण होते ही गणधर-इन्द्रभूति गौतम केवली बन चुके थे / सभी 10. (क) सामाइयमाइयाई एकारस अंगाई अहिज्जइ-अंतगड 6, वर्ग अ. 15. (ख) अन्तगड 8 वर्ग अ- 1 भगवतीसूत्र 2019 (घ) ज्ञाताधर्म अ. 12 / ज्ञाता 201 1. (क) चोद्दसपुवाई अहिज्जइ–अन्तगड 3 वर्ग. अ. 9 (ख) अन्तगड 3 वर्ग, अ. 1 (ग) भगवतीसूत्र 11-11-432 / 17-2-617 12. अन्तगड वर्ग-४, अ. 1 13. तेणं कालेणं तेणं समएणं ममणस्स भगवनो महावीरस्स नवगणा इक्कारस गणहरा हुत्था। -कल्पसूत्र 14. एक वाचनिको यतिसमुदायो गण:कल्पसूत्र ----सुबोधिका वृत्ति 15. एवं रचयतां तेषां सप्तानां गणधारिणाम / परस्मरमजायन्त विभिन्नाः सूत्रवाचना: / / अकम्पिता:ऽचल भ्रात्रोः श्रीमेतार्यप्रभासयोः / परस्परमजायन्त सदृक्षा एव वाचनाः // श्रीवीरनाथस्य गणधरेष्वेकादशस्वपि / द्वयोर्द्व योर्वाचनयोः माम्यादासन गणा नव // —त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र-पर्व 10, सर्ग 5, श्लोक 173 से 175 [16] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org