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________________ प्रस्तावना स्थानांग सूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन भारतीय धर्म, दर्शन साहित्य और संस्कृति रूपी भव्य भवन के वेद, त्रिपिटक और आगम ये तीन मूल प्राधार-स्तम्भ हैं, जिन पर भारतीय-चिन्तन प्राधत है। भारतीय धर्म दर्शन साहित्य और संस्कृति की अन्तरात्मा को समझने के लिये इन तीनों का परिज्ञान आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है। वेद वेद भारतीय तत्त्वद्रष्टा ऋषियों की वाणी का अपूर्व ब अनूठा संग्रह है। समय-समय पर प्राकृतिक सौन्दर्य-सुषमा को निहार कर या अद्भुत, अलौकिक रहस्यों को देखकर जिज्ञासु ऋषियों की हत्तन्त्री के सुकुमार, तार झनझना उठे, और वह अन्तहृदय की वाणी वेद के रूप में विश्रत हुई। ब्राह्मण दार्शनिक मीमांसक वेदो को सनातन और अपौरुषेय मानते हैं। नैयायिक और वैशेषिक प्रभति दार्शनिक उसे ईश्वरप्रणीत मानते हैं। उनका यह प्राघोष है कि वेद ईश्वर की वाणी है। किन्तु आधुनिक इतिहासकार वेदों की रचना का समय अन्तिम रूप से निश्चित नहीं कर सके हैं। विभिन्न विज्ञों के विविध मत हैं, पर यह निश्चित है कि वेद भारत की प्राचीन साहित्य-सम्पदा है। प्रारम्भ में ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद ये तीन ही वेद थे। अत: उन्हें वेदत्रयी कहा गया है। उस के पश्चात अथर्ववेद को मिलाकर चार वेद बन गये ! ब्राह्मण ग्रन्थ व प्रारण्यक ग्रन्थों में वेद की विशेष व्याख्या की गयी है। उस व्याख्या में कर्मकाण्ड की प्रमुखता है। उपनिषद् वेदों का अन्तिम भाग होने से वह वेदान्त कहलाता है। उसमें ज्ञानकाण्ड की प्रधानता है / वेदों को प्रमाणभूत मानकर ही स्मृतिशास्त्र और सूत्र-साहित्य का निर्माण किया गया। ब्राह्मण-परम्परा का जितना भी साहित्य निर्मित हुआ है, उस का मूल स्रोत वेद हैं। भाषा की दृष्टि से वैदिक-विज्ञों ने अपने-विचारों की अभिव्यक्ति का माध्यम संस्कृत को बनाया है और उस भाषा को अधिक से अधिक समृद्ध करने का प्रयास किया है। त्रिपिटक त्रिपिटक तथागत बुद्ध के प्रवचनों का सुव्यवस्थित संकलन-पाकलन है, जिस में आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक और नैतिक उपदेश भरे पड़े हैं। बौद्धपरम्परा का सम्पूर्ण आचार-विचार और विश्वास का केन्द्र त्रिपिटक साहित्य है। पिटक तीन हैं, सुत्तपिटक, बिनयपिटक, अभिधम्म पिटक / सुत्तपिटक में बौद्धसिद्धान्तों का विश्लेषण है, विनयपिटक में भिक्षुत्रों की परिचर्या और अनुशासन-सम्बन्धी चिन्तन है, और अभिधम्मपिटक में तत्त्वों का दार्शनिक-विवेचन है। आधुनिक इतिहास-वेत्तानों ने त्रिपिटक का रचनाकाल भी निर्धारित किया है। बौद्धसाहित्य अत्यधिक-विशाल है। उस साहित्य ने भारत को ही नहीं, अपितु चीन, जापान, लंका, बर्मा, कम्बोडिया, थाईदेश, आदि अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज को भी प्रभावित किया है। वैदिक-विज्ञों ने विज्ञों की भाषा संस्कृत अपनाई तो बुद्ध ने उस युग की जनभाषा पाली अपनाई। पाली भाषा को अपनाने से बुद्ध जनसाधारण के अत्यधिक लोकप्रिय हुये। जैन अागम "जिन" की वाणी में जिसकी पूर्ण निष्ठा है, वह जैन है। जो राग द्वेष आदि आध्यात्मिक शत्रुओं के विजेता हैं, वे जिन हैं / श्रमण भगवान महावीर जिन भी थे, तीर्थंकर भी थे / वे यथार्थज्ञाता, वीतराग, प्राप्त [13] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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