________________ प्रागमों के प्रकाशन-सम्पादन-मुद्रण के कार्य में जिन विद्वानों तथा मनीषी श्रमणों ने ऐतिहासिक कार्य किया, पर्याप्त सामग्री के अभाव में आज उन सबका नामोल्लेख कर पाना कठिन है। फिर भी मैं स्थानकवासी परम्परा के कुछ महान मुनियों का नाम ग्रहण अवश्य ही करूगा / - पूज्य श्री अमोलकऋषिजी महाराज स्थानकवासी परम्परा के बे महान् साहसी व दृढसंकल्प बली मुनि थे, जिन्होंने अल्प साधनों के बल पर भी पूरे बत्तीस सूत्रों को हिन्दी में अनूदित करके जन-जन को सुलभ बना दिया। पूरी वत्तीमी का मम्पादन प्रकाशन एक ऐतिहासिक कार्य था, जिससे सम्पूर्ण स्थानकवासी व तेरापंथी समाज उपकृत हुग्रा / गुरुदेव पूज्य स्वामी श्रीजोरावरमलजी महाराज का एक संकल्प--- ____ मैं जब गुरुदेव स्व. स्वामी श्री जोरावरमलजी महाराज के तत्त्वावधान में प्रागमों का अध्ययन कर रहा था तब आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित कुछ आगम उपलब्ध थे। उन्हीं के आधार पर गुरुदेव मुझे अध्ययन कराते थे / उनको देखकर गुरुदेव को लगता था कि यह संस्करण यद्यपि काफी श्रमसाध्य है, एवं अब तक के उपलब्ध संस्करणों में काफी शुद्ध भी हैं, फिर भी अनेक स्थल अस्पष्ट हैं। मूल पाठ में एवं उसकी वत्ति में कहींकहीं अन्तर भी है, कहीं वृत्ति बहुत संक्षिप्त है। गुरुदेव स्वामी श्री जोरावरमलजी महाराज स्वयं जैन सूत्रों के प्रकाण्ड पण्डित थे। उनकी मेधा बड़ी व्युत्पन्न व तर्कणा-प्रधान थी। पागम साहित्य की यह स्थिति देखकर उन्हें बहुत पीड़ा होती और कई बार उन्होंने व्यक्त भी किया कि आगमों का शुद्ध, सुन्दर व सर्वोपयोगी प्रकाशन हो तो बहुत लोगों का कल्याण होगा, कुछ परिस्थितियों के कारण उनका संकल्प, मात्र भावना तक सीमित रहा। इसी बीच प्राचार्य श्री जवाहरलालजी महाराज, जैनधर्म-दिवाकर प्राचार्य श्री प्रात्मारामजी महाराज, पूज्य श्री धासीलाल जी महाराज प्रादि विद्वान् मुनियों ने भागमों की सुन्दर व्याख्याएँ व टीकाएं लिखकर अथवा अपने तत्त्वावधान में लिखवाकर इस कमी को पूरा किया है। वर्तमान में तेरापंथ सम्प्रदाय के प्राचार्य श्री तुलसी ने भी यह भगीरथ प्रयत्न प्रारम्भ किया है और अच्छे स्तर से उनका पागमकार्य चल रहा है। मुनि श्री कन्हैयालालजी 'कमल' प्रागमों की बक्तव्यता को अनुयोगों में वर्गीकृत करने का मौलिक एवं महत्त्वपूर्ण प्रयास कर रहे हैं। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक परम्परा के विद्वान् श्रमण स्व. मुनिश्री पुण्यविजयजी ने आगम-सम्प्रादन की दिशा में बहत ही व्यवस्थित व उत्तमकोटि का कार्य प्रारम्भ किया था। उनके स्वर्गवास के पश्चात् मुनिश्री जम्बूविजयजी के तत्वावधान में यह सुन्दर प्रयत्न चल रहा है / उक्त सभी कार्यों का विहंगम अवलोकन करने के बाद मेरे मन में एक संकल्प उठा / आज कहीं तो आगमों के मूल मात्र का प्रकाशन हो रहा है और कहीं आगमों की विशाल व्याख्याएं की जा रही हैं। एक पाठक के लिए दुर्बोध है तो दूसरी जटिल। मध्यम मार्ग का अनुसरण कर पागम-वाणी का भावोद्घाटन करने वाला ऐसा प्रयत्न होना चहिये जो सुबोध भी हो, सरल भी हो, संक्षिप्त हो, पर सारपूर्ण व सुगम हो। ____ गुरुदेव ऐसा ही चाहते थे। उसी भावना को लक्ष्य में रखकर मैंने 4-5 वर्ष पूर्व इस विषय में चिन्तन प्रारम्भ किया। सुदीर्घ चिन्तन के पश्चात् वि० सं० 2036 वैशाख शुक्ला 10 महावीर कैवल्यदिवस को दृढ निर्णय करके आगमबत्तीसी का सम्पादन -विवेचन कार्य प्रारम्भ कर दिया और अब पाठकों के हाथों में आगम-ग्रन्थ क्रमश: पहुँच रहे हैं, इसकी मुझे अत्यधिक प्रसन्नता है। [11] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org