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________________ प्रकाशकीय प्राचाराङ्ग, उपामुकदशांग, ज्ञाताधर्मकथांग, अन्तकृद्दशांग और अनुत्तरौघपातिकदशांग के प्रकाशन के पश्चात् स्थानांगसूत्र पाठकों के कर-कमलों में समर्पित किया जा रहा है। प्रागम-प्रकाशन का यह कार्य जिस वेग से अग्रसर हो रहा है, प्राशा है उससे पाठक अवश्य सन्तुष्ट होंगे। हमारी हार्दिक अभिलाषा तो यह है कि प्रस्तुत प्रकाशन को और अधिक त्वरा प्रदान की जाए, किन्तु आगमों के प्रकाशन का कार्य जोखिम का कार्य है। अनूदित आगमों को सावधानी के साथ निरीक्षण-परीक्षण करने के पश्चात् ही प्रेस में दिया जाता है। इस कारण प्रायः कुछ अधिक समय लग जाना स्वाभाविक है। इसके अतिरिक्त विद्य त्संकट के कारण भी मुद्रण कार्य में बाधा पड़ जाती है / तथापि प्रयास यही है कि यथासंभव शीघ्र इस महान् और महत्त्वपूर्ण कार्य को सम्पन्न किया जा सके। प्रस्तुत प्रागम का अनुवाद पण्डित हीरालालजी शास्त्री ने किया है / अत्यन्त दुःख है कि शास्त्रीजी इसके आदि-अन्त के भाग को तैयार करने से पूर्व ही स्वर्गवासी हो गए। उनके निधन से समाज के एक उच्चकोटि के सिद्धान्तवेत्ता की महती क्षति तो हई ही, समिति का एक प्रमुख सहयोगी भी कम हो गया। इस प्रकार समिति दीर्घदृष्टि और लगनशील कार्यवाहक अध्यक्ष सेठ पुखराजजी शीशोदिया एवं शास्त्रीजी इन दो सहयोगियों से वंचित हो गई है। शास्त्रीजी द्वारा अनदित समवायांग प्रेस में दिया जा रहा है। प्रागरा में सूत्रकृतांग के प्रथम श्र तस्कन्ध का मुद्रण चाल है। द्वितीय श्रु तस्कन्ध अजमेर में मुद्रित कराने की योजना है। भगवतीसूत्र का प्रथम भाग मुद्रण की स्थिति में आ रहा है / अन्य अनेक आगमों का कार्य भी चल रहा है। स्थानांग के मूल पाठ एवं अनुवादादि में प्रागमोदय समिति की प्रति प्राचार्य श्री अमोलकऋषिजी म. तथा युवाचार्य श्री महाप्रज्ञ (मुनि श्रीनथमलजी म.) द्वारा सम्पादित 'ठाणं' की सहायता ली गई है। अतएव अनुवादक की ओर से और हम अपनी ओर से भी इन सब के प्रति आभार व्यक्त करना अपना कर्तव्य समझते हैं। युवाचार्य पण्डितप्रवर श्रीमधुकर मुनिजी तथा पण्डित शोभाचन्द्रजी भारिल्ल ने अनुवाद का निरीक्षणसंशोधन किया है। समिति के अर्थदातानों तथा अन्य पदाधिकारियों से प्रत्यक्ष-परोक्ष सहयोग प्राप्त हया है। प्रस्तावनालेखक विद्वद्वयं श्रीदेवेन्द्र मुनि जी म. सा. का सहयोग अमूल्य है। किन शब्दों में उनका आभार व्यक्त किया जाय ! श्री सुजानमलजी सेठिया तथा वैदिक यंत्रालय के प्रबन्धक श्री सतीशचन्द्रजी शुक्ल से भी मुद्रण-कार्य में स्नेहपूर्ण सहयोग मिला है। इन सब के हम आभारी हैं। समिति के सभी प्रकार के सदस्यों से तथा आगमप्रेमी पाठकों से नम्र निवेदन है कि समिति द्वारा प्रकाशित भागमों का अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार करने में हमें सहयोग प्रदान करें, जिससे समिति के उद्देश्य की अधिक पूर्ति हो सके। समिति प्रकाशित आगमों से तनिक भी आर्थिक लाभ नहीं उठाना चाहती, बल्कि लागत मूल्य से भी कम ही मूल्य रखती है। किन्तु कागज तथा मुद्रण व्यय अत्यधिक बढ़ गया है और बढ़ता ही जा रहा है। उसे देखते हुए आशा है जो मूल्य रक्खा जा रहा है, वह अधिक प्रतीत नहीं होगा। रतनचन्द्र मोदी कार्यवाहक अध्यक्ष जतनराज महता महामंत्री प्रागम प्रकाशन समिति, ब्यावर (राजस्थान) चांदमल विनायकिया मंत्री [9] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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