________________ प्रथम उद्देशक : गाथा 16 से 27 24. ते णावि संधि णचा गंमते धम्मविऊ जणा / जे ते उ वाइणो एवं न ते दुक्खस्स पारगा / / 24 // 25. ते णावि संधि णच्चा णं न ते धम्मविऊ जणा। जे ते उ वाविणो एवं न ते मारस्स पारगा॥ 25 // 26. णाणाविहाई दुक्खाइं अणुभवंति पुणो पुणो। संसारचक्कवालम्मि वाहि-मच्चु-अराकुले // 26 // 27. उच्चावयाणि गच्छंता गब्भमेस्संताणतसो। ___ नायपुत्ते महाबोरे एवमाह जिणोत्तमे // 27 // त्ति बेमि॥ 16. घर में रहने वाले (गृहस्थ), तथा वन में रहने वाले तापस एवं प्रव्रज्या धारण किये हुए मुनि अथवा पार्वत–पर्वत की गुफाओं में रहने वाले (जो कोई) भी (मेरे) इस दर्शन को प्राप्त (स्वीकार) कर लेते हैं, (वे) सब दुःखों से मुक्त हो जाते हैं। 20. वे (पूर्वोक्त मतवादी अन्यदर्शनी) न तो सन्धि को जानकर (क्रिया में प्रवृत्त होते हैं,) और न ही वे लोग धर्मवेत्ता हैं / इस प्रकार के (पूर्वोक्त अफलवाद के समर्थक) वे जो मतवादी (अन्यदर्शनी) हैं, उन्हें (तीर्थंकर ने) संसार (जन्म-मरण की परम्परा) को तैरने वाले नहीं कहे। 21. वे (अन्यतैथिक) सन्धि को जाने बिना ही (क्रिया में प्रवृत्त होते हैं,) तथा वे धर्मज्ञ नहीं हैं। इस प्रकार के जो वादी है (पूर्वोक्त सिद्धान्तों को मानने वाले) हैं, वे (अन्यतीर्थी) चातुर्गतिक संसार (समुद्र) के पारगामी नहीं हैं। 22. वे (अन्य मतावलम्बी) न तो सन्धि को जानकर (क्रिया में प्रवृत्त होते हैं); और न ही वे लोग धर्म के ज्ञाता हैं। इस प्रकार के जो वादी (पूर्वोक्त मिथ्या सिद्धान्तों को मानने वाले) हैं, वे गर्भ (में आगमन) को पार नहीं कर सकते। 23. वे (अन्य मतवादी) न तो सन्धि को जानकर ही (क्रिया में प्रवृत्त होते हैं), और न ही वे धर्म के तत्त्वज्ञ हैं। जो मतवादी (पूर्वोक्त मिथ्यावादों के प्ररूपक हैं, वे जन्म (परम्परा) को पार नहीं कर सकते। 24. वे (अन्य मतवादी) न तो सन्धि को जानकर (क्रिया में प्रवृत्ति करते हैं), और न ही वे धर्म का रहस्य जानते हैं। इस प्रकार के जो वादी (मिथ्यामत के शिकार) हैं, वे दुःख (-सागर) को पार नहीं कर सकते। 25. वे अन्यतीर्थी सन्धि को जाने बिना ही (क्रिया में प्रवृत्त हो जाते हैं), वे धर्म मर्मज्ञ नहीं हैं। अतः जो (पूर्वोक्त प्रकार से मिथ्या प्ररूपणा करने वाले) वादी हैं, वे मृत्यु को पार नहीं कर सकते। 26. वे (मिथ्यात्त्वग्रस्त अन्य मतवादी) मृत्यु, व्याधि और वृद्धावस्था से पूर्ण (इस) संसाररूपी चक्र में बार-बार नाना प्रकार के दुःखों का अनुभव करते हैं-दुःख भोगते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org