________________ 216] [सूत्रकृतांगसुत्र-द्वितीय श्रुतस्कन्ध इच्छामि गं भंते ! तुम्भ अंतियं चाउज्जामातो धम्मातो पंचमहव्वतियं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि / तते णं से उदए पेढालपुत्ते समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए चाउज्जामातो धम्मातो पंचमहन्वतियं सपडिक्कमणं धम्म उवसंपज्जित्ताणं विहरति ति बेमि / नालंदइज्जं: सत्तमं प्रज्झयणं सम्मत्तं / / // सूयगडंगसुत्तं : बीनो सुयक्खंधो सम्मत्तो।। ॥सूयगडंगसुत्तं सम्मत्तं // ८७३-इसके बाद (भ. महावीर की परम्परा में अपनी परम्परा के विलीनीकरण की बात सुन कर उदकनिम्रन्थ की सरलता से प्रभावित) भगवान् गौतम उदक पेढालपुत्र को लेकर जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ पहुंचे। भगवान् के पास पहुँचते ही उनसे प्रभावित उदक निम्रन्थ ने स्वेच्छा से जीवन परिवर्तन करने हेतु श्रमण भगवान महावीर की तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की, ऐसा करके फिर वन्दना की, नमस्कार किया, वन्दन-नमस्कार के पश्चात इस प्रकार कहा- "भगवन् ! मैं आपके समक्ष चातुर्यामरूप धर्म का त्याग कर प्रतिक्रमणसहित पंचमहाव्रत वाले धर्म को स्वीकार करके विचरण करना चाहता हूँ।" इस पर भगवान् महावीर ने कहा "देवानुप्रिय उदक! तुम्हें जैसा सुख हो, वैसा करो, परन्तु ऐसे शुभकार्य में प्रतिबन्ध (ढील या विलम्ब) न करो।" तभी (परम्परा-परिवर्तन के लिए उद्यत) उदक ने (भगवान् की अनुमति पाकर) चातुर्याम धर्म से श्रमण भगवान महावीर से सप्रतिक्रमण पंचमहाव्रतरूप धर्म का, अंगीकार किया और (उनकी आज्ञा में) विचरण करने लगा। -ऐसा मैं कहता हूँ। विवेचन-कृतज्ञताप्रकाश की प्रेरणा और उदकनिर्ग्रन्थ का जीवन परिवर्तन-प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. 867 से 873 तक) में शास्त्रकार ने उदकनिनन्थ के निरुत्तर होने के बाद से लेकर उनके जीवनपरिवर्तन तक की कथा बहुत ही सुन्दर शब्दों में अंकित की है। उदकनिम्रन्थ के जीवनपरिवर्तन तक की कथा में उतार-चढ़ाव की अनेक दशाओं का चित्रण किया गया है--- (1) श्री गौतम स्वामी द्वारा शिष्ट पुरुषों के परम्परागत प्राचार के सन्दर्भ में परमोपकारी श्रमण-माहन के प्रति वन्दनादि द्वारा कृतज्ञताप्रकाश की उदक निम्रन्थ को स्पष्ट प्रेरणा / (2) उदक निर्ग्रन्थ द्वारा श्री गौतमस्वामी के सयुक्तिक उत्तरों से प्रभावित होकर कृतज्ञताप्रकाश के रूप में योगक्षेम पदों की अपूर्व प्राप्ति का स्वीकार तथा इन पदों के प्रति श्रद्धा, प्रतीति और रुचि रखने की वाणी द्वारा अभिव्यक्ति / (3) श्री गौतमस्वामी द्वारा इन सर्वज्ञकथित पदों की सत्यता पर, प्रतीति, रुचि रखने का उदक निम्रन्थ को प्रात्मीयतापूर्वक परामर्श / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org