________________ क्रियास्थान : द्वितीय अध्ययन ] [ 53 अर्थदण्डप्रत्ययिक से लेकर लोभप्रत्ययिक क्रियास्थान तक 12 अधर्मक्रियास्थान हैं, और तेरहवाँ ऐपिथप्रत्ययिकक्रियास्थान धर्मक्रियास्थान है। इस प्रकार क्रियास्थानों का व होने से इस अध्ययन का नाम 'क्रियास्थान' है। कर्मबन्धन से मुक्त होने के लिए कर्मक्षयाकांक्षी साधक पहले 12 प्रकार के अधर्मक्रियास्थानों को जान कर उनका त्याग करदे तथा तेरहवें धर्मक्रियास्थान को मोक्षमार्ग में प्रवृत्ति करने हेतु अपनाये, यही प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य है।' a जैन दृष्टि से रागद्वेषजन्य प्रत्येक प्रवृत्ति (क्रिया) हिंसा रूप होने से कर्मबन्ध का कारण होती है, 0 सूत्रसंख्या 664 से प्रारम्भ होकर सूत्र संख्या 721 पर यह अध्ययन पूर्ण होता है। 1. सूत्रकृतांग शीलांक वृत्ति, पत्रांक 304 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org