________________ पौण्डरीक : प्रथम अध्ययन : सूत्र 693 ] [51 (11) वह भिक्षु कर्म, संग और गृहवास का मर्मज्ञ होता है, सदा उपशान्त, समित, सहित एवं संयत रहता है / वही भिक्षु धर्मार्थी, धर्मवेत्ता, संयमप्राप्त तथा प्रस्तुत अध्ययन में वर्णित गुणों से सम्पन्न होता है / वह उस उत्तम पुण्डरीक को प्राप्त करे या न करे परन्तु प्राप्त करने योग्य हो जाता है। (12) उसे श्रमण कहें, या माहन (ब्राह्मण) कहें, क्षान्त,दान्त, गुप्त, मुक्त, ऋषि, मुनि, यति, कृती, विद्वान्, भिक्षु, रूक्ष, तीरार्थी अथवा चरण-करण-पारवेत्ता कहें, वही पूर्वोक्त पुरुषों में योग्य सर्वश्रेष्ठ पंचम पुरुष है। ॥पौण्डरीक : प्रथम अध्ययन समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org