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________________ 28 ] [ सूत्रकृतांगसूत्र-द्वितीय श्रु तस्कन्ध नहीं कर पाते, अधबीच में ही कामभोगों के कीचड़ में फंस जाते हैं। श्वेतकमल के समान निर्वाण पाना तो दूर रहा, वे न तो अपना उद्धार कर सकते हैं, न दूसरों का ही। तृतीय पुरुष : ईश्वरकारणवादी-स्वरूप और विश्लेषण ६५६-प्रहावरे तच्चे पुरिसज्जाते ईसरकारणिए ति पाहिज्जइ / इह खलु पादीणं वा 4 संतेगतिया मणुस्सा भवंति अणुपुम्वेणं लोयं उववन्ना, तं जहा-प्रारिया वेगे जाव तेसि च णं महंते एगे राया भवति जाव सेणावतिपुत्ता। तेसि च णं एगतीए सड्डी भवति, कामं तं समणा य माहणा य पहारिसु गमणाए जाव जहा मे एस धम्मे सुमक्खाए सुपण्णत्ते भवति / ६५६-दूसरे पाञ्चमहाभूतिक पुरुष के पश्चात् तीसरा पुरुष 'ईश्वरकारणिक' कहलाता है। इस मनुष्यलोक में पूर्व आदि दिशाओं में कई मनुष्य होते हैं, जो क्रमशः इस लोक में उत्पन्न हैं / जैसे कि उनमें से कोई प्रार्य होते हैं, कोई अनार्य इत्यादि / प्रथम सूत्रोक्त सब वर्णन यहाँ जान लेना चाहिए / उनमें कोई एक श्रेष्ट पुरुष महान् राजा होता है, यहाँ से लेकर राजा की सभा के सभासदों (सेनापतिपुत्र) तक का वर्णन भी प्रथम सूत्रोक्त वर्णनवत् समझ लेना चाहिए। इन पुरुषों में से कोई एक धर्मश्रद्धालु होता है / उस धर्मश्रद्धालु के पास जाने का तथाकथित श्रमण और ब्राह्मण (माहन) निश्चय करते हैं / वे उसके पास जा कर कहते हैं-हे भयत्राता महाराज! मैं आपको सच्चा धर्म सुनाता हूं, जो पूर्वपुरुषों द्वारा कथित एवं सुप्रज्ञप्त है, यावत् आप उसे ही सत्य समझे / ६६०-इह खलु धम्मा पुरिसादीया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिसपज्जोइता पुरिसअभिसमण्णागता पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / ' [1] से जहानामए गंडे सिया सरोरे जाते सरीरे बुड्ढे सरीरे अभिसमण्णागते सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति / एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / [2] से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे अभिसंवुड्डा सरीरे अभिसमण्णागता सरीरमेव अभिभूय चिटुति / एवामेव धम्मा पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति / [3] से जहाणामए वम्मिए सिया पुढवीजाते पुढवीसंवुड्ढे पुढवीअभिसमण्णागते पुढवीमेव अभिभूय चिट्ठति / एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव अभिभूय चिह्रति / [4] से जहाणामए रुक्खे सिया पुढवीजाते पुढविसंवुड्ढे पुढविश्नभिसमण्णागते पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति / एवामेव धम्मा वि पुरिसाइया जाव अभिभूय चिट्ठति / [5] से जहानामए पुक्खरणी सिया पुढविजाता जाव पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति / एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति। 1. तुलना---'.."पुरिसादीया धम्मा"."से जहानामते अरतीसिया......"एवामेव धम्मा वि पुरिसादीया जाव चिट्ठति / एवं गंडे वम्मीके थूभे रुक्खे, वणसंडे, पुक्खरिणी"""""उदगपुक्खले....."अगणिकाए सिया अरणीय जाते.... एवामेव धम्मावि पुरिसादीया तं चेव ..... ..." इसिभासियाई-अ-२२, पृ. 43 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003470
Book TitleAgam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Ratanmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages847
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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