________________ 22 / [ सूत्रकृतांगसूत्र- द्वितीय श्रुतस्कन्ध निकाल कर दिखलाता हुआ कहता है-अायुष्मन् ! यह तलवार है, और यह म्यान है। इसी प्रकार कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर से जीव को पृथक् करके दिखला सके कि आयुष्मन् ! यह तो आत्मा है और यह (उससे भिन्न) शरीर है। (2) जैसे कि कोई पुरुष मुज नामक धास से इषिका (कोमलस्पर्श वाली शलाका) को बाहर निकाल कर अलग-अलग बतला देता है कि आयुष्मन् ! यह तो मुंज है, और यह इषिका है। इसी प्रकार ऐसा कोई उपदर्शक पुरुष नहीं है, जो यह बता सके कि "आयुष्मन् ! यह प्रात्मा है और यह (उससे पृथक् ) शरीर है।" (3) जैसे कोई पुरुष मांस से हड्डी को अलग-अलग करके बतला देता है कि "आयुष्मन् ! यह मांस है और यह हड्डी है।" इसी तरह कोई ऐसा उपदर्शक पुरुष नहीं है, जो शरीर से प्रात्मा को अलग करके दिखाला दे कि "आयुष्मन् ! यह तो आत्मा है और यह शरीर है।" (4) जैसे कोई पुरुष हथेली से आँवले को बाहर निकाल कर दिखला देता है कि "आयुष्मन् ! यह हथेली (करतल) है, और यह आँवला है।' इसी प्रकार कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा को पृथक करके दिखा दे कि 'पायुष्मन् ! यह प्रात्मा है, और यह (उससे पृथक) शरीर है।' (5) जैसे कोई पुरुष दही से नवनीत (मक्खन) को अलग निकाल कर दिखला देता है कि "आयुष्मन् ! यह नवनीत है और यह दही है।" इस प्रकार कोई ऐसा पुरुष नहीं है, जो शरीर से आत्मा को पृथक् करके दिखला दे कि 'आयुष्मन् ! यह तो प्रात्मा है और यह शरीर है।' (6) जैसे कोई पुरुष तिलों से तेल निकाल कर प्रत्यक्ष दिखला देता है कि "आयुष्मन् ! यह तो तेल है और यह उन तिलों की खली है," वैसे कोई पुरुष ऐसा नहीं है, जो शरीर को प्रात्मा से पृथक् करके दिखा सके कि 'प्रायुष्मन् ! यह प्रात्मा है, और यह उससे भिन्न शरीर है।' (7) जैसे कि कोई पुरुष ईख से उसका रस निकाल कर दिखा देता है कि "अायुष्मन् ! यह ईख का रस है और यह उसका छिलका है;" इसी प्रकार ऐसा कोई पुरुष नहीं है जो शरीर और आत्मा को अलग-अलग करके दिखला दे कि 'प्रायुष्मन् ! यह आत्मा है और यह शरीर है / ' (8) जैसे कि कोई पूरुष अरणि की लकड़ी से भाग निकाल कर प्रत्यक्ष दिखला देता है कि"आयुष्मन् ! यह अरणि है और यह आग है," इसी प्रकार कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जो शरीर और आत्मा को पृथक् करके दिखला दे कि 'आयुष्मन् ! यह आत्मा है और यह उससे भिन्न शरीर है।' इसलिए प्रात्मा शरीर से पृथक् उपलब्ध नहीं होती, यही बात युक्तियुक्त है। इस प्रकार (विविध युक्तियों से प्रात्मा का अभाव सिद्ध होने पर भी) जो पृथगात्मवादी (स्वदर्शनानुरागवश) वारबार प्रतिपादन करते हैं, कि आत्मा अलग है, शरीर अलग है, पूर्वोक्त कारणों से उनका कथन मिथ्या है। ६५१-से हंता हणह खणह छणह दहह पयह पालुपह विलुपह सहसक्कारेह विपरामुसह,एत्ताव ताव जोवे, णस्थि परलोए, ते णो एवं विप्पडिवेदेति, तं जहा—किरिया इ वा अकिरिया इ वा सुक्कडे ति वा दुक्कडे ति वा कल्लाणे ति वा पावए ति वा साहू ति वा असाहू ति वा सिद्धि ति वा प्रसिद्धि ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org