________________ परिशिष्ट 2 : स्मरगीय सुभाषित सुभाषित 426 गाया संख्या 426 जहा कुम्मे स अंगाई, सए देहे समाहरे। एवं पावाई मेधावी, अज्झप्पेण समाहरे // सादियं ण मुसं बूया, एस धम्मे बुसीमतो। अप्पपिडासि पाणासि अप्पं भासेज्ज सुब्बते / भासमाणो न भासेज्जा, णेव वंफेज मम्मयं / होलाबायं सहीवायं, गोताबायं च नो वदे / 467 हम्ममाणो न कुप्पेज्जा, वुच्चमाणो न संजले / 468 लद्धे कामे ण पत्थेज्जा, विवेगे एसमाहिए। 478 आदीणभोई वि करेति पावं / 476 सव्वं जगं तू समयाणुपेही, पियमप्पियं कस्सइ नौ करेज्जा / 481 वेराणगिद्धे णिचयं करेति / 464 मुसं न बूया मुणि अत्तगामी। 465 न सिलोयकामी य परिव्वएज्जा। एयं खणाणिणो सारं, जंन हिंसति केचणं / 545 आहंसु विज्जाचरणं पमोक्खं / 546 ण कम्मुणा कम्म खवेंति बाला, अकम्मणा कम्म खति धीरा। अण्णं जणं पस्सति बिंबभूतं / 567 णिक्खम्म जे सेवतिऽगारिकम्म, ण से पारए होति विमोयणाए। न पूयणं चेव सिलो यकामी पियमप्पियं कस्सति णो कहेज्जा। जे छए विप्पमादं न कुज्जा। निदं च भिक्खू न पमाय कुज्जा, कहं कहं वी वितिगिच्छतिण्णे / ण यावि किंचि फरुसं वदेज्जा, सेयं खु मेयं ण पमाद कुज्जा / 568 नो छादते नो वि य लूसएज्जा, माणं ण सेवेज्ज पगासणं च / ण यावि पण्णे परिहास कुज्जा, ण याऽऽसिसावाद वियागरेज्जा / / 605 अलसए णो पच्छम्णभासी, णो सुत्तमत्थं च करेज्ज ताई। भतेहिं न विरुज्झेज्जा, एस धम्मे वुसीमओ। भावणा जोगसुद्धप्पा, जले णावा व आहिया। नावा व तौर संपत्ता, सव्वदुक्खा तिउति // 613 अकुव्वतो णवं नत्थि, कम्मं नाम विजाणइ। 615 . इथिओ जे ण सेवंति, आदिमोक्खाहते जणा। 616 अणेलिसस्स खेतण्णे, ग विरुज्झेज्ज केणइ। से ह चक्ख मणुस्साणं, जे कंखाए तू अंतए। 100 564 578 580 585 588 620 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org